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________________ वर्णन से कवि ने सूर्य के जैविक गतिविधियों के संचालक रुप को स्पष्ट किया है । जल प्रत्येक जैव रासायनिक प्रतिक्रिया का माध्यम है अतः जीवन का आधार भी है। जयोदय महाकाव्य ने पानी के शुद्धतम रूप का वर्णन करते हुए हिमनद' जल स्वरुप को निर्मल गुण वाला बताया है। ज्ञान सागर जी ने जल के गुणों का वर्णन करते हुए उसके सरस रूप की भी चर्चा की है। शरद ऋतु में सरोवर का जल कमलों से युक्त हो जाता है? इसका वर्णन बड़ा ही मनोहारी किया है । कवि ने जीवन दायिनी गंगा के नित्य प्रवाहमान' स्वरुप, उसके सौन्दर्य, उसके प्रवाह, पवित्रता आदि का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। - जयकुमार के गुणों की प्रशंसा करते हुए कवि ने यमुना नदी का सजीव चित्रण किया है तथा उसका श्यामल रुप भी बड़े सुन्दर ढंग से वर्णित किया है। जयकुमार के गम्भीरता की उपमा समुद्र' से की है। वनों की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है यह सर्वविदित है । इसलिये इसकी उपयोगिता का वर्णन कवि ने अपने जयोदय महाकाव्य में किया है। वनों की गहनता का वर्णन करते हुए कवि ने वन की प्रखरता से चर्चा की है जहाँ वृक्षों की गहन शाखाओं के कारण सूर्य की किरणे जयकुमार के मस्तक पर नहीं पड़ रही थी । इसीलिए विश्राम के लिए वह स्थल चुना । कवि ने वृक्षों के सौन्दर्य एवं उनके छायादार स्वरुप को भी बड़े ही अनूठे ढंग से पेश किया है। संरक्षण का जो मार्ग बचता है, वह है अधिकाधिक पेड़ लगाना । सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत काफी पेड़ आज सड़कों के किनारे लगाये जाते हैं, इस विषय का उल्लेख करते हुए कवि ने सड़क के सौन्दर्य की तुलना नायिका के सौन्दर्य से करने के क्रम में दोनों और लगे पेड़ो" को आधार बनाया है। पेडों को मानव उपकारी मानते हुए उनकी तुलना सदाचारी" व्यक्ति से की है। 1. जयोदय महाकाव्य, 15/41 2. वही, 4/59 3. वही, 1/8 - 9 4. वही, 13 /58 5. वही, 6/107 11. वही, 5 / 21 6. वही, 6/81 7. वही, 13/68 8. वही, 13/76 9. वही, 13/75 10. वही, 4/15 76
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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