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मुनिचर्या में श्लेष के माध्यम से जैन धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों का भी कवि ने प्रतिपादन किया है ।
अनेकान्तप्रतिष्ठोऽपि चेकान्तस्थितिमभ्यगात् । अकायक्लेसंभूतः कायक्लेशमपि श्रयन् ॥
मुनि जयकुमार अनेकान्त प्रतिष्ठोऽपि - अनेक स्थलों में स्थित हुये थे । एकान्तस्थितिमभ्यगात् - एकान्त निर्जन स्थान को प्राप्त हुये थे। दूसरा अर्थ अनेकान्त नामक स्याद्वाद सिद्धान्त में स्थित होकर भी एकान्त स्थिति विविक्त शय्यायसन नामक तप को प्राप्त हुये थे तथा कायक्लेश से रहित होकर भी कायक्लेश को प्राप्त हुये थे। दूसरे अर्थ पंचाग्नि तपादि क्लेशों से रहित होकर भी आतापनादि योगरुप कायक्लेश तप के आश्रयी थे ।
इस प्रकार आचार्य ज्ञान सागर जी ने श्लेष पदों के माध्यम से जहाँ एक और जैन दर्शन के गुणस्थान, मार्गणा, अनेकान्त कर्म अवस्थादि सिद्धान्तों और अपने प्रिय समन्तभद्र, अकलंक, विद्यानन्द, माणिक्य नन्दि जैसे पूर्वाचार्यो का नामोल्लेख किया है । काव्य विनोद का समावेश भी काव्य की विशेषता है। पावन तीर्थ सम्मेद शिखर और जिनवाणी का भी सादर उल्लेख हुआ है आचार्य ज्ञान सागर जी ने अर्हन्त को ही नमन किया है । इस प्रकार दिगम्बरत्व की रक्षा भी कवि ने की है।
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कविवर ज्ञानसागर की बहु आयामी दृष्टि
जयोदयकार का पर्यावरणीय ज्ञान
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आचार्य ज्ञान सागर जी द्वारा रचित जयोदय महाकाव्य अपनी विशेषताओं के कारण एक अपना अलग अस्तित्व रखता है । इस महान् ग्रन्थ के अभ्यन्तर में छिपे पर्यावरणीय संरक्षण के सूत्रों को कवि ने अपने कौसल से लोक जीवन के ताने बाने में समाहित किया है । अनेक घटनाओं के अंकन के साथ आध्यात्मिक कथ्य का समन्वित एवं समेकित निरुपण काव्यकार की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
सूर्य का हमारे जीवन में बहुत महत्व है क्योंकि यह हमें प्राथमिक ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा प्रदान करता है। सौर ऊर्जा अत्यन्त उत्कृष्ट है, क्योंकि सस्ती होने के साथ साथ यह कभी भी समाप्त नहीं होती तथा प्रदूषण भी नहीं करती।
आचार्य ज्ञानसागर जी ने सूर्य के ऊर्जस्वी और तेजस्वी दोनों रूपों का वर्णन किया है। सूर्य के प्रभाव से होने वाले जैविक कार्यकलापों की दार्शनिक आख्या भी प्रस्तुत की गयी है। सूर्य के अस्त होने पर पक्षियों की शांति के
1. जयोदय महाकाव्य, 28/12
2. वही 7/9
3. वही 15/15
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