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फल, शरीर के अभाव में आत्मा का विनाश नहीं होता, प्रतिक्रमण का स्वरुप, साधु की चर्या, इन्द्रियाधीन प्राणी की दशा, पन्चेन्द्रियविजय, मूल गुण का स्वरुप, सात शेष गुणों का कथन, साधु को सदा ध्यान-ज्ञान में रत रहना चाहिए, आर्त्तध्यान का स्वरुप व भेद, रौद्रध्यान का स्वरुप, धर्मध्यान का स्वरुप, आज्ञाविचयधर्म ध्यान का स्वरुप विपाकविचयधर्मध्यान में चिन्तनीय विषय, साधु निर्द्वन्द्वता का आश्रय करे, आत्मसुखों के लिए बाह्यसुखों का त्याग आवश्यक, निरन्तर शुभपरिणाम रखे, सिद्ध परमेष्ठी का स्थान प्राप्त करना ही लक्ष्य, संकल्प विकल्प पतन के कारण है, चित्त की स्थिरता ज्ञान और ध्यान से ही होती है। ध्यान का फल, आर्यिकाओं को क्या निषिद्ध है यह बताया गया है। मुनि आर्यिकाओं का सम्पर्क न करें, मुनि के द्वारा परिहरणीय स्थान, समता, वन्दना, स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और कायोत्सर्ग का जो समय कहा गया है उसी समय में करना चाहिए, रौद्रध्यान छोड़कर धर्म शुक्लध्यान की प्राप्ति की भावना, स्वाध्याय के योग्य स्थान, नवधाभक्ति द्वारा प्रदत्त आहार शुद्ध है। कार्य के चार कारण द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव कारणों का कथन, मुक्ति के चार कारण, चार कारणों व निर्ग्रन्थता का फल, साधु के विभिन्न नामों की सार्थकता को कहा गया है।
महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी कहते हैं कि मुनिव्रत निःश्रेयस मोक्ष का पात्र बनने के लिए उचित कारण है। जो वीर प्रभु तीर्थनायक महावीर स्वामी का भजन करते हैं वे सत्यपुरुष संसार सागर को पार करते हैं।
आचार्य ज्ञानसागर का वैदुष्य जयोदय महाकाव्य में ज्ञान सागर जी का व्याकरणात्मक वैशिष्ट्य
संस्कृत भाषा को जानने के लिए व्याकरण का अध्ययन परम आवश्यक है। व्याकरण का अर्थ है - पदों की मीमांसा करने वाले शास्त्र व्यक्रियन्ते शब्दा अनेनेति व्याकरणम् व्याकरण को वेद पुरुष का मुख कहा गया है। मुखं व्याकरणं स्मृतम् जिस प्रकार से शरीर में मुख की अनिवार्यता है उसके द्वारा भोजन ग्रहण करते हैं। जिसके विपाक परिणाम से शरीर का पोषण होता है। वेद रुपी पुरुष के वास्तविक स्वरुप को जानने के लिए व्याकरण का अध्ययन आवश्यक है। मुख के बिना हमारा शरीर पुष्ट नहीं हो सकता है उसी प्रकार व्याकरण के बिना वेद रुपी पुरुष पुष्ट नहीं हो सकता है।
प्राचीन आचार्य ऋषि मुनियों ने व्याकरण की महत्ता बतलायी है। अन्य शास्त्र में गति पाने, पदों की सुन्दर व्याकृति करने और वेदार्थ की सम्यक जानकारीके लिए व्याकरण का ज्ञान नितान्त आवश्यक है। इसके ज्ञान के बिना काव्य की रचना नहीं हो सकती है। यतः शब्दार्थ का यह भाव ही काव्य है अतः शब्दार्थ के ज्ञान और विवेचन के लिए व्याकरण परम उपयोगी है।
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