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________________ का उपभोग तुम मत करो। किसी बड़े पुरुष को समर्पण करना, जिसे सुनकर वह बालक सेठ वृषभदास को कमल भेट करने की इच्छा से गया और आकाशवाणी की बात कहकर वह कमल उन्हें देने लगा। इन्होंने वह कमल राजा को देना चाहा और उस बालक को लेकर राजा के समीप गये। सम्पूर्ण बात जानने पर राजा ने वह कमल जिन भगवान की सेवा में समर्पित करना चाहा। सबको लेकर वह जिन मन्दिर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर राजा ने बड़े महोत्सव से वह सहस्रदल कमल बालक के हाथ से जिन भगवान् के चरणों में समर्पित करवा दिया। सेठ वृषभदास ने उस बालक को योग्य जानकर अपने घर सेवक बना लिया। एक दिन शीतकाल में वह बालक जंगल से लकड़ियों को काट कर घर लौट रहा था। तब उसने मार्ग में एक वृक्ष के नीच ध्यानावस्था में साधु को देखा। उनको गरीब जानकर विचार किया कि निश्चय ही इन्हें शीत सता रहा होगा। अतः उसने उनके आगे आग जला दी और स्वयं भी बैठ गया। सारी रात आग जलाता हुआ वहीं बैठा रहा। प्रातः काल जब मुनिराज ने अपनी समाधि समाप्त की ओर सामने आग जलाते हुए उस बालक को देखा और प्रसन्न होकर नमोऽर्हते मन्त्र का उपदेश दिया और कहा कि किसी भी कार्य के करने से पहले इस मन्त्र का स्मरण कर लिया करो। बालक मुनि को प्रणाम करके घर चला आया और मुनि की आज्ञा का पालन करते हुए जीवन यापन करने लगा। - एक दिन जब वह गाय भैसों को चराने के लिए जंगल गया हुआ था, तब एक भैंस किसी सरोवर में घुस गई। उसको निकालने के लिए वह मंत्रस्मरण पूर्वक सरोवर में कूदा। सरोवर में लकड़ी की चोट लगने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी और उस महामन्त्र के प्रभाव से वही बालक सेठ वृषभदास के घर में पुत्र बनकर जन्मा। वह भीलनी भी मरक भैंस हुई। उसके बाद धोबिन बनी और उसके योग से उसका आर्यिकाओं के साथ समागम हो गया और उसने आर्थिक व्रत को अपना लिया। वही क्षुल्लिका अपने गुणों के कारण तुम्हारी पत्नि मनोरमा बनी। अतः अब तुम दोनों धर्म के अनुकूल धर्म आचरण करते हुए जीवन बिताओ। .. मुनिराज के अमृत वचनों को सुनकर सुदर्शन और मनोरमा मुनि के द्वारा बताये गये मार्ग पर चलकर सुख पूर्वक जीवन यापन करने लगे। पंचम सर्ग -. एक दिन प्रातः काल जिनेन्द्र देव का पूजन करके जब सुदर्शन लौट रहा था तो रास्ते में कपिला ब्राह्मणी ने उसको देखा और उसके अपूर्व सौन्दर्य 63.
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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