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उस आर्य खण्ड में अंग नाम का एक देश है जो अपने अतुलित वैभव के कारण जाना जाता था। इसी देश में चम्पापुरी नाम की एक नगरी थी। इस नगर में धात्रीवाहन नाम का राजा राज्य करता था। उस राजा की अत्यन्त रुपवती किन्तु कुटिल अभयमती नाम की रानी थी। . द्वितीय सर्ग -
उस समय चम्पापुरी में सज्जन, दानी, बुद्धिमान, कलावान वैश्यों में सर्वश्रेष्ठ वृषभदास नाम का एक सेठ निवास करता था। उसकी पत्नी सुन्दर, दोष रहित, मृदुभाषिणी एवं जिनमति नाम वाली थी। एक दिन जिनमति ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में हर्ष को बढ़ाने वाली प्रतिपदा तिथि का अनुकरण करती हुयी स्वप्नावली को देखा। प्रातः काल होते ही माङ्गलिक कार्यो को करके सुन्दर वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित होकर अपने पति के पास जाकर बोली कि आज मैंने हर्ष को देने वाली स्वप्नावली देखी है। मैं उसका अभिप्राय जानने के लिए आपके पास आयी हूँ। मैंने प्रथम स्वप्न में सुमेरु पर्वत, दूसरे में कल्पवृक्ष, तीसरे में सागर, चौथे में निर्धूम अग्नि और पांचवे स्वप्न में आकाश में विहार करते हुए विमान को देखा है। ... सेठानी की बात को सुनकर सेठ ने कहा इनका फल जानने के लिए हमें योगिराज के पास चलना चाहिए। ऐसा विचार कर सेठ और सेठानी ने जिनालय में जाकर भगवान् की पूजा की और योगिराज के दर्शन के लिए गए। योगिराज के पास जाकर सेठ और सेठानी ने हाथ जोडकर प्रणाम किया मुनि राज ने उन्हें आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात् सेठ ने मुनि से निवेदन किया कि मेरी पत्नि ने रात्रि में पाँच स्वप्नों को देखा है। हम उन स्वप्नों का अभिप्राय जानने की इच्छा से आपके पास आये हैं। सेठ की बात को सुनकर मुनिराज बोले कि तुम्हारी पत्नी ने जो पाँच स्वप्न देखे हैं उनका फल है कि वह योग्य पुत्र को जन्म देगी। प्रथम स्वप्न में सुमेरु पर्वत देखा है, उसके समान तुम्हारा पुत्र धैर्यवान होगा। कल्पवृक्ष का फल है उसके अनुसार दानशील होगा। सागर के समान गुण रुप रत्नों का भण्डार होगा, निर्धूम अग्नि के समान अपने कर्मरूप ईधन को भस्मसात् करके शिवपद को प्राप्त करेगा। स्वर्गवासी देवों का प्रिय पात्र होगा।
मुनि के वचनों को सुनकर सेठ सेठानी अति प्रसन्न हुए। उसके पश्चात् जिनमति ने गर्भ धारण किया जिससे उसका सौन्दर्य दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। सेठ वृषभदास अपनी पत्नि जिनमति का प्रसन्नचित्त होकर संरक्षण करने लगा। तृतीय सर्ग -
नव मास व्यतीत होने पर शुभ बेला में जिनमति ने पृथ्वी को सुशोभित करने वाले पुत्र को जन्म दिया। सेवक से पुत्रोत्पत्ति का समाचार सुनकर
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