________________
बारहवें स्वप्न में तुमने जो सुन्दर सिंहासन देखा है उसके समान ही तुम्हारा पुत्र निरन्तर उन्नति को प्राप्त करने वाला, उत्तम कान्ति से युक्त और शिवराज्य पद का अनुगामी होगा ।
तैरहवें स्वप्न में देव सेवित विमान देखने का अर्थ है कि तुम्हारा पुत्र देवताओं से सेव्य, लोगों को मोक्ष दिलाने वाला और अति पवित्र आत्मा होगा ।
चौदहवें स्वप्न में तुमने जो श्वेत वर्ण वाला नाग मन्दिर देखा है उसके समान ही तुम्हारा पुत्र अपने उज्ज्वल यश के कारण देव गृह के समान विश्व प्रसिद्ध होगा ।
पन्द्रहवें स्वप्न में तुमने निर्मल रत्नों की राशि देखी है, फलस्वरुप तुम्हारा पुत्र अत्यन्त निर्मल गुण राशि से शोभायमान होगा।
सोलहवें स्वप्न में तुमने धूमरहित अग्नि का समूह देखा है । यह स्वप्न इस बात का सूचक है कि तुम्हारा पुत्र भी चिरकालीन दारूण परिपाक वाले कर्म समूह को भस्म करके अपने निर्मल आत्म स्वरुप को प्राप्त करेगा । इस प्रकार तुम्हारा पुत्र तीनों लोकों का स्वामी तीर्थडकर होगा ।
उत्पन्न होने वाले अपने पुत्र से राजा द्वारा बताये गये लक्षणों को सुनकर रानी प्रियकारिणी आनन्द से रोमाञ्चित हो गई । तीर्थेश्वर के गर्भवतरणा को जानकर देवताओं ने भी आकर रानी की वन्दना की ।
पंचम सर्ग
-
भगवान् महावीर के गर्भ में आने के पश्चात् श्री ही आदि देवियाँ वहाँ आई । राजा सिद्धार्थ ने उनका आदर सत्कार किया तथा उनके आने का कारण पूछा । राजा के पूछने पर देवियों ने बताया कि रानी प्रियकारिणी के गर्भ में जिनेन्द्र भगवान् का अवतार हुआ है । अतः इन्द्र के आदेश से तीर्थंकर की पूज्य माता की सेवा करने आये हैं । अतएव हमको पुण्य कार्य की अनुमति मिले । राजा से आज्ञा पाकर सभी देवियाँ कंचुकी के साथ माता के समीप जाकर उनकी चरण वन्दना करने लगी। अपने मधुर वचनों से माता को आश्वस्त किया और लग्नता से सेवा में जुट गयी । देवियों के आग्रह करने पर रानी उनके भगवद्विषयक प्रश्नों का उत्तर देकर उन्हें सन्तुष्ट करती थी । इस प्रकार वे सभी देवियाँ माता के साथ ही गर्भस्थ जिनेन्द्र देव की भी सेवा अर्चना करने लगी।
1
षष्ठ सर्ग
-
रानी प्रियकारिणी के गर्भवृद्धि के लक्षणों को देखकर राजा सिद्धार्थ अति प्रसन्न हुए । ऋतुराज बसन्त का आगमन हुआ। चारों ओर प्रसन्नता का साम्राज्य फैल गया। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तम समय में रानी प्रियकारिणी
54