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________________ सोमदत्त और राजकुमारी के विवाह के समय विषा वहाँ आयी और राजा को प्रणाम किया। राजा ने अपनी कन्या उसे और सोमदत्त को सौंप दी और सोमदत्त को अपना आधा राज्य दे दिया । एक समय सोमदत्त के घर एक साधु आये । सोमदत्त विषा और राजकुमारी ने उनका आदर सत्कार किया। मुनिराज ने सम्यग् दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चरित्ररूप रत्नत्रय को अपनाने का उपदेश दिया। जिससे प्रभावित होकर सोमदत्त ने दिगम्बरी दीक्षा ले ली । विषा और वसन्त सेना वेश्या ने भी आर्याव्रत धारण किया । सोमदत्त ने तपस्या से सब सिद्धि को प्राप्त किया। विषा और वसन्तसेना ने अपने तप के अनुसार स्वर्ग की प्राप्ति की । वीरोदय महाकाव्य का संक्षिप्त कथासार प्रथम सर्ग - आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व जब वसुन्धरा हिंसा, दुराचार, स्वार्थलिप्सा और पाप से भरी हुयी थी, वसुन्धरा का उद्धार करने के लिए भगवान महावीर ने जन्म लिया । द्वितीय सर्ग भारत वर्ष के छ: खण्ड हैं, जिनमें आर्य खण्ड सर्वोत्तम है । इसी आर्य खण्ड में विदेह नाम का एक देश है । इस देश के सर्वश्रेष्ठ नगर का नाम कुण्डनपुर है । इस नगर के मार्ग व बाजार कैसे सजे होते थे इसका सुन्दर वर्णन इस सर्ग में किया गया है। - तृतीय सर्ग इस कुण्डनपुर नामक नगर में राजा सिद्धार्थ शासन करता था । उसने अपने पराक्रम से अनेक राजाओं को अधीन कर लिया था । राजा सिद्धार्थ सौन्दर्य, धैर्य, स्वास्थ्य, गाम्भीर्य, उदारता, प्रजावत्सलता विद्या आदि में निपुण था । उसे चारों परुषार्थों का ज्ञान था ! राजा सिद्धार्थ की पत्नी का नाम प्रियकारिणी था । वह अनुपम सुन्दरी, राजमहिषी, परम अनुरागमयी और पतिमार्गानुगामी थी। वह दया, प्रेम, क्षमा से परिपूर्ण हृदयवाली, शान्तस्वभावी, लज्जाशीला, परमदानशीला थी। रानी समदर्शिता, कोमलता आदि से परिपूर्ण थी। उसने अपने अप्रतिम गुणों के कारण राजा सिद्धार्थ के हृदय में अचल स्थान पा लिया था। राजा रानी अत्यधिक प्रेम करते थे। इस प्रकार उनका जीवन प्रेममय होकर आनन्द से व्यतीत हो रहा था। चतुर्थ - आषाढ़ मास की षष्ठी तिथि को भगवान महावीर का रानी प्रियकारिणी के गर्भ में अवतार हुआ। वर्ष ऋतु के सुखद वातावरण से परिपूर्ण एक दिन 52
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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