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________________ बांध दिया। विश्राम करने के पश्चात् सोमदत्त उठा और सेठ गुणपाल के घर जा पहुँचा। घर पर पहुँचकर सोमदत्त ने वह पत्र महाबल को दे दिया । महाबलव उसकी माता पत्र पढ़कर सोचने लगी कि सेठ की अनुपस्थिति में विषा का विवाह इस युवक से कैसे किया जाय ? तंब उन्होंने सोमदत्त से पूछा कि पत्र देते समय उन्होंने ओर कुछ तो नहीं कहा। सोमदत्त ने कहा उन्होंने पत्र में लिखे हुये कार्य को जल्दी सम्पन्न करने के लिए मुझे भेजा है। सेठ जी वहाँ अनेक आवश्यक कार्य होने के कारण नहीं आ सके । सोमदत्त की बात को सुनकर महाबल और उसकी माता ने शुभ मुहूर्त में विषा और सोमदत्त का विवाह कर दिया। पंचमलम्ब विषा ओर सोमदत्त के विवाह के समाचार को सुनकर गुणपाल विचार करने लगा कि मैंने जो उपाय सोमदत्त को मारने के लिये किये वे सब उसके जीवन के उपाय हो गये। लेकिन अब वह अपने ही घर में आसानी से मारा जा सकता है | गुणपाल यह सोच रहा था कि गोविन्द अपने बेटे के बारे में उससे पूछने लगा | गुणपाल ने झूठी हँसी के साथ बताया कि वह अब मेरा जामाता हो गया है। इसलिए वह कुछ दिन वहीं रहेगा । सोमदत्त मारने की इच्छा से दूसरे दिन अपने घर को लौट गया । गुणपाल ने महाबल से पत्र मंगवा कर पुनः पढ़ा और उसने सोचा कि दुबारा पत्र न पढ़ने के कारण यह अनिष्ट हो गया। उसने अपनी मारने की इच्छा को . दबाकर गुणश्री व महाबल से कहा कि में तो जानना चाहता था कि विषा के लिए यह वर तुम लोगों को ठीक लगा या नहीं। जैसा तुमने किया अच्छा किया किन्तु उसके मारने की इच्छा कम न हुयी । उसने नागपंचमी के दिन सोमदत्त को बुलाकर मन्दिर में पूजन सामग्री भेजने को कहाँ । सोमदत्त ने उस बात को सहर्ष स्वीकार कर लिया । सोमदत्त के तैयार हो जाने पर गुणपाल मन्दिर के समीप रहने वाले चाण्डाल के पास गया । चाण्डाल को बहुत सा धन देकर सोमदत्त को मारने के लिए कहा । उसने चाण्डाल से कहा कि जो पुरुष पूजन सामग्री लेकर इधर से जाय, उसे मार डालना। सोमदत्त जब पूजन सामग्री लेकर जाने लगा तो रास्ते में गेंद खेलते हुए महाबल ने अपनी गेंद सोमदत्त को देकर खेलने के लिए कहा तथा हाथ से पूजन की थाली लेकर स्वयं मन्दिर की ओर चला गया। रास्ते में ही चाण्डाल ने तलवार से महाबल का वध कर दिया । 50
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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