SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की पत्नि के गर्भ से जन्मा है। किन्तु अपने पूर्वजन्मों के पाप के कारण अपने माता - पिता के सुख से वंचित है। शिष्य ने मुनि से उसके पूर्व जन्म की कथा कहने को कहा - मुनि ने कहा - अवन्ती प्रदेश में शिप्रा नामक नदी के तट पर शिशपा नामक छोटी सी बस्ती है। उसमें मृगसेन नामक एक धीवर रहता था। उसकी पत्नि का नाम घण्टा था। एक दिन वह मछलियाँ पकड़ने जा रहा था। रास्ते में उसने पार्श्वनाथ के मन्दिर अहिंसां सकोपदेशक दिगम्बर साधु को देखा। उस साधु के अहिंसा पूर्ण शब्दों से प्रभावित होकर उसने मुनि के चरणों को पकड़कर अपने पापी जीवन से उद्धार हेतु उपाय पूछा। मुनि ने उसे समझाया कि मछलियाँ पकड़ते समय जो मछली सबसे पहले जाल में फँसे उसे छोड़ देना। धीवर ने मुनि की बात को स्वीकर कर लिया। द्वितीय लम्ब - मुनि के उपदेश को याद करके वह मृगसेन धीवर शिप्रा नदी के तट पर पहुंचा और उसने अपना जाल जल में बिछा दिया। पहली बार उसके जाल में रोहित मछली फँसी, उसने उसे छोड़ दिया। उसके बाद उसने कई बार जाल फैलाया किन्तु वह मछली बार-बार उसके जाल में फँस जाती और वह प्रतिज्ञानुसार उस मछली को पानी में छोड़ देता। एक ओर तो अहिंसाव्रत का पालन करना था और दूसरी ओर स्त्री पुत्रादि के भरण - पोषण की चिन्ता। अन्त में वह निराश होकर खाली हाथ घर की ओर चल पड़ा। पति को खाली हाथ देखकर वह देर से आने का कारण पूछा। पत्नी के पूछने पर धीवर ने साधु पुरुष के समान आचरण करने के अपने निश्चय को बताया। घण्टा धीवरी ने कहा कि गृहस्थ होकर साधु के समान आचरण करने की क्या आवश्यकता ? मृगसेन के बहुत समझाने पर भी वह धीवरी नहीं समझी। क्रोध में आकर उसने अपने पति को घर से निकाल दिया। अपमानित मृगसेन एक निर्जन धर्मशाला में गया और वहाँ विश्राम के लिए लेट गया। उसी समय एक सर्प ने आकर उसे डस लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। यही मृगसेन धीवर इस बालक के रुप में सार्थवाह के घर जन्मा है। पति को घर से निकालकर घण्टा अपनी कठोरता पर पश्चाताप करने लगी और उसे ढूँढते - ढूँढते उसी धर्मशाला में पहुँची। वहाँ अपने पति को मरा हुआ देखकर वह सिर पीट पीट कर रोने लगी और अहिंसाव्रत पालन 300030 48)
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy