SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानसागर बने और अपनी रचनाओं में उनका गुरु रुप में स्मरण किया है। ज्ञान सागर जी अध्ययन समाप्त करने के बाद राणोली ग्राम वापस आ गये वहाँ पर ग्रामीण विद्यालय में अवैतनिक अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया तथा स्थानीय जैन बालकों को पढ़ाने का कार्य नि:स्वार्थ भाव से प्रारम्भ किया और शेष समय में साहित्य साधना में लगे रहे। इनकी लेखनी से एक से बढ़कर एक सुन्दर काव्य कृतियाँ जन्म लेती रही। इनकी तरुणाई विद्वता और अजीविकोपार्जन की क्षमता देखकर इनके विवाह के लिए अनेकों प्रस्ताव आये, सगे सम्बन्धियों ने भी आग्रह किया। किन्तु इन्होंने विवाह नहीं किया, क्योंकि इन्होंने वाराणसी में अध्ययन करते हुए ही संकल्प ले लिया था कि आजीवन ब्रह्मचारी रहकर माँ सरस्वती और जिनवाणी की सेवा में, अध्ययन - अध्यापन तथा साहित्य सृजन में ही अपने आपको समर्पित कर देना है। इस प्रकार जीवन के 50 वर्ष साहित्य साधना, लेखन, मनन, चिन्तन एवं अध्ययन में व्यतीत कर इन्होंने पूर्ण पांडित्य प्राप्त कर लिया। इसी अवधि में आपने 'दयोदय', 'भद्रोदय', 'वीरोदय', 'जयोदय', 'सुदर्शनोदय' आदि साहित्यिक रचनायें संस्कृत भाषा में प्रस्तुत की। पचास वर्ष तक गृहस्थाश्रम में रहकर असाधारण ज्ञानार्जन करते हुए 'ज्ञानं भारः क्रियां बिना' क्रिया के बिना ज्ञान भार स्वरुप है इस मन्त्र को जीवन में उतारने हेतु ये त्याग मार्ग पर प्रवृत्त हुए। 52 वर्ष की आयु में सन् 1947 में इन्होंने अजमेर नगर में ही आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से सप्तमप्रतिमा' के व्रत अंगीकार किये। सप्तमप्रतिमा व्रत - संयम अंश जगो जहाँ, भोग अरूचि परिणाम। उदय प्रतिज्ञा को भयो, प्रतिमा ताको नाम॥ जब संयम धारण करने का भाव उत्पन्न हो, विषय-भोगों से अंतरंग में उदासीनता उत्पन्न हो, तब जो त्याग की प्रतिज्ञा की जाय वह प्रतिमा कहलाती है। वे प्रतिमाएं 11 हैं - __ 1. दर्शन प्रतिमा 2. व्रत प्रतिमा 3. सामयिक प्रतिमा 4. प्रोषध प्रतिमा 5. सचित्तत्याग प्रतिमा 6. रात्रि भोजन त्याग प्रतिमा 7. ब्रह्मचर्य प्रतिमा 8. आरम्भ त्याग प्रतिमा 9. परिग्रहत्याग प्रतिमा 10. अनुमतित्याग प्रतिमा 11. उद्दिष्टत्याग प्रतिमा। श्रावक धर्म - संहिता, पृ. 67 1. पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, जैनधर्मामृत, 4/135 1. गोरीलाल जैन, बाहुबलीसन्देश, पृ. 33
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy