________________
थोड़े ही समय में आपने शास्त्री परीक्षा तक के ग्रन्थों का अध्ययन पूरा कर लिया। श्री भूरामल जी बचपन से ही कठिन परिश्रमी, अध्यवसायी, स्वावलम्बी एवं निष्ठावान थे।
ये अध्ययन काल में गंगा घाट पर गमछे बेचकर उससे प्राप्त धन से अपना भोजन खर्च, विद्यालय में जमा करते और शेष से अपना अन्य खर्च चलाते थे। विद्यालय के 70 वर्ष के इतिहास में ऐसा दूसरा उदाहरण देखने व सुनने को नहीं मिला।
आप जब बनारस में पढ़ रहे थे तब तक जैन व्याकरण साहित्य आदि के ग्रन्थ प्रकाशित ही नहीं हुए थे इससे इनका मन क्षुब्ध हो उठा। परिणामतः आपने जैन साहित्य, न्याय, व्याकरण को पुर्नजीवित करने का भी दृढ़ संकल्प ले लिया। अतः विद्यालय के छात्र अजैन व्याकरण और साहित्य के ग्रन्थ पढ़कर ही परीक्षाएँ उर्तीण किया करते थे।
___ आपको यह देखकर दु:ख हुआ कि जब जैन आचार्यों ने व्याकरण साहित्य आदि के एक से एक ग्रन्थों का निर्माण किया है तब हमारे जैन छात्र क्यों नहीं पढ़ते ? पर परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रलोभन उन्हें अजैन ग्रन्थों को पढ़ने के लिए प्रेरित करता था। आपके हृदय में यह विचार उत्पन्न हुआ कि अध्ययन समाप्ति के बाद में इस कमी को पूर्ण करेंगे।
जब आप वाराणसी विद्यालय में पढ़ रहे थे उस समय विद्यालय में जितने भी विद्वान अध्यापक थे वे सभी ब्राह्मण थे अतः वे जैन ग्रन्थों को पढ़ाने में आनाकानी करते और पढ़ने वाले को हतोत्साहित भी करते थे। किन्तु आपको जैन ग्रन्थों के पढ़ने और उनको प्रकाश में लाने की प्रबल इच्छा थी। अतः आपने जैसे भी जिस अध्यापक से सम्भव हुआ, आपने जैन ग्रन्थों को ही पढ़ा। जब आप बनारस विद्यालय में पढ़ रहे थे तब वहाँ पर पं. उमराव सिंह जी से ब्रह्मचर्य प्रतिमा अंगीकार कर लेने पर ब्रह्मचारी ज्ञानानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जैन ग्रन्थों के पठन-पाठन के लिए बहुत प्रोत्साहन मिलता रहा। वे स्वयं उस समय धर्म शास्त्र का अध्ययन कराते थे। यही कारण है कि पं. भूरामल जी जैन जगत् में प्रसिद्ध महाकवि दिगम्बराचार्य
1. पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावना भाग पृ. ढ़। 2. पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, जेनधर्ममृत, 4/135 3. पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावना भाग
3323880030003082500000000000000000000000000000000000000000000000
2000000000000000000
3 4 3