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द्वितीय अध्याय महाकवि आचार्य ज्ञानसागर और जयोदय महाकवि आचार्य ज्ञान सागर का परिचय -
मुनि श्री ज्ञान सागर जी का जन्म अठारहवीं शताब्दी में राजस्थान के सीकर जिले में राणोली ग्राम के छावड़ा गोत्र के खण्डेलवाल जाति में वैश्य परिवार के श्री चतुर्भुज जी के पुत्र रुप में माँ घृतावरी देवी के कोख से हुआ था। श्री चतुर्भुज के छः सन्तान हुई जो सभी पुत्र थे जिनमें पाँच पुत्र जीवित रहे।
सबसे बड़े पुत्र का नाम छगनलाल रखा गया। उसके पश्चात् घृतावरी देवी ने दो जुड़वा पुत्रों को जन्म दिया, दोनों पुत्रों में चेतना न होने के कारण दोनों को ही मृत मान लिया गया। परमपिता परमेश्वर की अद्भुत लीला से एक बालक में चेतना लौट आई यही बालक परम सन्त आचार्य ज्ञान सागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका बचपन का नाम भूरामल था, इनके पश्चात् माँ घृतावरी देवी ने तीन पुत्रों को जन्म दिया, गंगा प्रसाद, गोरीलाल व देवीदल नाम रखा।
इनके दादा श्री सुखदेव जी दिगम्बर जैन धर्म के अनुयायी थे। इनके पिता का स्वर्गवास विक्रम सम्वत् 1959 को हो गया। उस समय इनके बड़े भाई की अवस्था 12 वर्ष की थी। अतः पिता की मृत्यु के बाद व्यवसाय को व्यवस्था बिगड़ गयी अर्थात् व्यवसाय समाप्त हो गया। बड़े भाई छगनलाल के आजीविका के हेतु एक जैन व्यापारी के यहाँ नौकरी करने लग गये। उस समय भूरामल जी की आयु 10 वर्ष थी अर्थात् बड़े भाई से दो वर्ष छोटे थे।
गाँव में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होनें आगे पढ़ाई के लिए अपने बड़े भाई से बनारस जाने का आग्रह किया। घर की परिस्थितिवश बड़े भाई राजी नहीं हुए परन्तु पढ़ने की तीव्र इच्छा व दृढ़ता देखकर इनके बड़े भ्राता ने 15 वर्ष की आयु में इन्हें वाराणसी जाने की स्वीकृति प्रदान कर दी।
जब आप स्यादवाद विद्यालय वाराणसी में पढ़ते थे तब सब कार्यो से परे रह कर रात-दिन ग्रन्थों का अध्ययन करने में लगे रहते। एक ग्रन्थ का अध्ययन समाप्त होते ही दूसरे ग्रन्थ का अध्ययन प्रारम्भ कर देते। इस प्रकार
1. मुनि संघ व्यवस्था समिति, नसीराबाद (राज.), श्री ज्ञान सागर जी महाराज
का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ. 2 2. जेनमित्र, साप्ताहिक पत्र, मुनि श्री ज्ञानसागरजी का संक्षिप्त परिचय ।
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