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से निबद्ध काव्य क्या चमत्कार हीन होने पर किसी सहृदय रसिक के मन को आकृष्ट करता है ? कभी नहीं ।
अतः चमत्कार ही काव्य का सर्वस्व है जिसके कारण सहृदय पाठक काव्योन्मुख होकर आनन्दानुभूति की चर्वणा करता है ।
आचार्य क्षेमेन्द्र ने अपने कविकण्ठाभरण में चमत्कार तत्त्व का दस रूपों में विभाजन किया है।
दशविधश्चमत्कारः
अविचारितरमणीयः, विचार्यमाणरमणीयः, समस्तसूक्तव्यापी, सूक्तेकदेशदृश्यः, शब्दगतः, अर्थगतः, शब्दार्थगतः, अलंकारगतः, रसगतः, प्रख्यातवृत्तिगतश्च ।'
अर्थात् काव्यगत चमत्कार दस प्रकार का होता है ।
1. बिना विचार किये प्रतीत होने वाला चमत्कार 2 . विचार करने पर प्रतीत होने वाला चमत्कार 3. समस्त सूक्ति में रहने वाला चमत्कार 4. सूक्ति के एक अंश में रहने वाला चमत्कार 5. शब्द में रहने वाला चमत्कार
6. अर्थ में रहने वाला चमत्कार
7. शब्द तथा अर्थ दोनों में रहने वाला चमत्कार
8. अलंकार में रहने वाला चमत्कार
9. रस में रहने वाला चमत्कार
10. प्रख्यात व्यक्ति के वृत्त में रहने वाला चमत्कार ।
इस प्रकार चमत्कार तत्व का क्षेत्र शब्द से लेकर काव्य की आत्मा
रस तथा उसके स्वरूप पूरे प्रबन्ध तक व्याप्त है ।
1. कविकण्ठाभरण, 3/2
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