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आलंकारिक ग्रन्थों में भी आस्वाद के रूप में चमत्कार शब्द का प्रयोग मिलता है। आनन्दवर्धन ने काव्य के स्वाद के अर्थ में चमत्कृति (चमत्कार) शब्द का प्रयोग ध्वन्यालोक में किया है। इसी व्यापक तथा आह्लाद सामान्य के अर्थ मे अभिनवगुप्त ने ध्वन्यालोक लोचन में इस शब्द का प्रयोग प्रायः किया है।
कुमारसम्भव में शिव-पार्वती के संभोग वर्णन की समीक्षा करते हुए लोचनकार कहते है - .
आस्वादयितृणां हि यत्र चमत्काराविघातः, तदेव रससर्वस्वं स्वादायतात्वात्। उत्तमदेवतासम्भोगपरिमर्श तु पितृसंभोग इव लज्जाऽऽ तडकादिना कः चमत्कारावकाशः॥ .
आशय यह है जहाँ काव्य के आस्वाद लेने वाले व्यक्तियों के चमत्कार का विघात नहीं होता, वहीं रस की पूर्ण सम्पत्ति विलसित होती है, परन्तु उत्तमदेवता के सम्भोग के वर्णन में क्या कभी चमत्कार का अवकाश है ? वहाँ तो पिता के सम्भोग के समान लज्जा का भाव उत्पन्न होता है अथवा भव का प्रादुर्भाव होता है। चमत्कार के लिए स्थान कहाँ ? ..
इसमें अभिनवगुप्त चमत्कार को काव्याह्लाद का दूसरा अभिधान मानते हैं। लोचनकार अभिनवगुप्त रस को ही चमत्कारात्मा बतलाते हैं
यद्यपि च रसेनैव सर्वं जीवति काव्यं तथापि तस्य रसस्य एकधनचमत्कारात्मनोऽपि कुतश्चिद् अंशात् प्रयोजकीभूतादधिकोऽसो चमत्कारोऽपि भवति।
चमत्कार के ऊपर लिखी गयी चमत्कार चन्द्रिका प्रथम आलंकारिक ग्रन्थ है। इसको आचार्य विश्वेश्वर ने लिखा है। इस ग्रन्थ के आरम्भ में चमत्कार की विशिष्ट परिभाषा है। चमत्कार कविता के पढ़ने पर सहृदय के हृदय में उत्पन्न आह्लाद का ही नाम है। काव्य में चमत्कार के सात आलम्बन होते हैं -
चमत्कारस्तु विदुषामानन्द - परिवाहकृत्। . गुणां रीतिं रसं वृत्तिं पाकं शय्यामलं कृतिम्॥
सप्तैतानि चमत्कारकारणां ब्रुवते बुधाः।। गुण, रीति, रस, वृत्ति, पाक, शय्या, अलंकृति। चमत्कार के आधार पर काव्य तीन प्रकार का होता है -
___ 1. चमत्कारी (शब्दचित्र)
1. ध्वन्यालोक - लोचन, पृ. 65
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