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क्षेमेन्द्र से पूर्व किसी भी साहित्यकार ने चमत्कृति का वर्गीकरण नहीं किया है ओर न ही उसका सोदाहरण विवेचन ही किया है।
चमत्कार के दशविध वर्गीकरण करने वाले साहित्य ज्ञाता क्षेमेन्द्र ही है। चमत्कार का यह सूक्ष्म विचार मुख्य रुप से क्षेमेन्द्र की ही वैचारिक देन है। ये चमत्कार पूर्ण जगत के सृजनकार है। जीवन के यथार्थद्रष्टा कवि है।
क्षेमेन्द्र अपने विचारों को प्रकट करने के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिसने पाठकों को असुविधा न हो और उनके काव्य बोझिल न हों।
___यह ग्रन्थ संक्षेप में किन्तु सुबोध रीति से लिखा गया है। क्षेमेन्द्र उच्चकोटि के ग्रन्थकार है। वे अनावश्यक विस्तार से बचते हैं और संक्षेप में ही विषय - प्रतिपादन करने में पूर्णतया समर्थ हैं। कविकण्ठाभरण में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगोचर होता है। अपनी विशिष्टता के कारण ही यह ग्रन्थ काफी लोकप्रिय हो गया है।
यह ग्रन्थ यद्यपि विस्तृत नहीं है फिर भी ग्रन्थकार ने जिस व्यावहारिक दृष्टि से समस्या को समझा और सुलझाया है तथा जिस प्रकार से व्यापक और अस्पष्ट विषय का स्पष्टता और सूक्ष्मता से प्रतिपादन किया है वह इतना महत्त्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र में क्षेमेन्द्र महान् निपुण सिद्ध होते हैं। .
___आचार्य क्षेमेन्द्र जैसे उच्चकोटि के कवि है वैसे ही वे श्रेष्ठ आचार्य हैं। प्रायः देखने को मिलता है कि ये दोनों गुण साथ - साथ नहीं चल पाते।
कवित्व के उत्कर्ष से आचार्यता शिथिल हो जाती है। कवि निरकुंश होने लगता है। इसी प्रकार आचार्यपन भावुकता को सुखाकर नीरस विवेक की वृद्धि करता है। साहित्य जगत में ऐसे उदाहरण अनेकों हैं। लेकिन क्षेमेन्द्र में ये दोनों गुण पूर्णरुप से विद्यमान है। अनेकानेक विषयों पर अपनी लेखनी का चमत्कार दिखाया है और सफलता प्राप्त की है। विविध शास्त्रों के ज्ञान से संवलित इनके जैसा कोई दूसरा कवि संस्कृत साहित्य में नहीं मिलता। काव्यों की शैली पुराणों सी इतिवृत्तात्मक है। यत्र - तत्र अलंकारों के सफल प्रयोग मिलते हैं।
___ इनका आचार्यत्व और कवित्व परस्पर सम्बद्ध है। कवियों के लिए इन्होंने जो - जो आदर्श प्रस्तुत किये है उन्हीं के अनुसार स्वयं रचनायें भी की
. क्षेमेन्द्र की विशाल उदारता, महाशयता ओर कला प्रियता का पता चलता है क्योंकि उन्होंने अपनी स्वयं की कविताओं में भी दोष दिखाने में जरा भी संकोच नहीं किया है।