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9. रसगत चमत्कार
- काव्य रस में रहने वाला चमत्कार। 10. प्रख्यातवृत्तिगत चमत्कार - काव्य के प्रख्यात विषय में रहने
वाला चमत्कार। क्षेमेन्द्र ने काव्य का भी विचारणीय अंग अविचारित नहीं रखा है।
चतुर्थ सन्धि - इस सन्धि में काव्य के गुण, दोष एवं काव्यभेद इन तीन विषयों का वर्णन करते है। उनकी दृष्टि में शब्दनिर्दोषता, अर्थ निर्दोषता तथा रस निर्दोषता ये तीन काव्य के गुण बतलाये हैं तथा शब्दसंदोषता, अर्थसंदोषता और रससंदोषता - ये तन काव्य के दोष है। जहाँ गुण का निवास होता है वहीं गुण के न रहने पर गुण की हानि के कारण दोष हो जाता है। क्षेमेन्द्र का मानना है कि गुण दोषों की संख्या बराबर है।
क्षेमेन्द्र ने जो पंचविध काव्य के भेद किये हैं, उससे हमें बीजगणित की याद आ जाती है। जिस प्रकार उसमें सभी संभावनाओं का ख्याल किया जाता है उसी प्रकार क्षेमेन्द्र ने भी अपने काव्य में सभी संभवों का विचार किया है।
काव्य के संभाव्य भेद पाँच है - __ 1. सगुण काव्य 2. निर्गुण काव्य 3. संदोषकाव्य 4. निर्दोषकाव्य 5. सगुणदोष काव्य।
पंचम सन्धि - इसके प्रारम्भ में शास्त्रीय गान की महिमा गायी गयी है। शास्त्र परिचय कवि को कवि सम्राट बनाने में समर्थ रहता है। इसके पश्चात् भिन्न - भिन्न शास्त्रों में किये गये तर्क, व्याकरण, राजनीति, धर्मशास्त्र इत्यादि अट्ठाईस शास्त्रों के ज्ञान का सोदाहरण विवेचन किया गया है।
क्षेमेन्द्र तर्कादि शास्त्रों का उदाहरण सहित विवेचन करते हैं और प्रकीर्ण पर जा पहुँचते ही प्रकीर्णे चित्रपरिचयो... ऐसा खुलासा कर देते हैं। अट्ठाईस शास्त्रों का सोदाहरण परिचय प्रस्तुत करने के पश्चात् वे इत्युक्ता रुचिरोचिता परिचय प्राप्ति विभागेगिरा' ऐसा कहते हैं।
ग्रन्थ के अन्त में परिश्रमशील कवि विद्वत्समाज में आत्मविश्वास के साथ भ्रमण करें और उन्हें पुण्य की प्राप्ति हो। इस प्रकार की शुभाशंसा ओर उद्गार कवि ने प्रकट किये हैं।
क्षेमेन्द्र का यह लघुकाय ग्रन्थ कवि शिक्षापरक संस्कृत ग्रन्थों में वैशिष्टयपूर्ण बन पड़ा है। अनेकों विद्वानों और कवियों ने चमत्कार सौन्दर्य, चारुता, वैशिष्टय आदि का प्रयोग किया है, उन सब में क्षेमेन्द्र अग्रणी हैं। 1. कविकण्ठा भरण, 5/2