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उनकी चमत्कारी लेखनी का चमत्कार है कि संक्षेप में ही हमें विषय का पूर्ण ज्ञान हो जाता है।
द्वितीय सन्धि - इस सन्धि के प्रारम्भ में छायोपजीवी, पदकोपजीवी, पादोपजीवी, सकलोपजीव्य और भुवनोपजीवी नामक कवियों के पाँच प्रकारों का उदाहरण सहित निरुपण किया है। उसके पश्चात् भाषा प्रभु की शिक्षा का विवेचन समाप्त करते समय शिक्षाणां शतं इति उक्त यह कहने का विस्मरण उन्हें नहीं होता है।
इसमें कवि के खान - पान, रहन - सहन, अध्ययन, घूमना-फिरना, अवलोकन - प्रेक्षण आदि सभी क्रियाकलापों के बारे में व्यावहारिक सूचनाएं दी गयी हैं।
तृतीय सन्धि - इस सन्धि का विषय है - चमत्कार निरुपण। वह निरुपण भी अन्वयव्यतिरेक पद्धति से ही किया गया है। क्षेमेन्द्र ने प्रारम्भ में लिखा है कि जो ग्रन्थकार काव्य में चमत्कार नहीं उत्पन्न कर सकता है वह कवि नहीं है और जिस काव्य में चमत्कार नहीं वह काव्य नहीं है।
क्षेमेन्द्र चमत्कार के दस प्रकारों का वर्णन करते हैं। 1. अविचारितरमणीय चमत्कार - अर्थात् झट प्रतीत होने वाला
चमत्कार। 2. विचार्यमाणरमणीय चमत्कार - विलम्ब से प्रतीत होने वाला
चमत्कार। 3. समस्त सूक्तव्यापी चमत्कार - पूरे काव्य में रहने वाला चमत्कार 4. सूक्तेकदेशदृश्य चमत्कार - काव्य के एक अंश में रहने वाला
चमत्कार 5. शब्दगत चमत्कार
काव्य के शब्द रूप माध्यम में रहने
वाला चमत्कार। 6. अर्थगत चमत्कार
अर्थ में रहने वाला चमत्कार । 7. शब्दार्थगत चमत्कार
शब्द अर्थ दोनों में रहने वाला
चमत्कार। 8. अलंकारगत चमत्कार
काव्य के अलंकार में रहने वाला
चमत्कार। 1. कविकण्ठाभरण, 2/22 2. नहि चमत्कार विरहितस्य कवे: कवित्वं, काव्यस्य वा काव्यत्वम् कविकण्ठाभरण,
तृतीय सन्धि।
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