SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 36. सेव्यसेवकोपदेश - यह लघुकाय ग्रन्थ है । इसके कुल 61 श्लोक 1 है । इसमें सेव्य व सेवकों के बीच के सम्बन्ध मधुर हो जाये, इसको ध्यान में रखकर लिखा गया है। मालिक व नौकरों की क्या जिम्मेदारियां है उनका विवेचन किया गया है । क्षेमेन्द्र ने इस ग्रन्थ के मंगलाचरण में सन्तोष रुप रत्न. को नमन करके बड़ा औचित्य दिखलाया है । कविकण्ठाभरण यह ग्रन्थ शिक्षा के विषय में लिखा गया है। क्षेमेन्द्र ने शिष्यों के उपदेश के लिए व कवियों की विशेष जानकारी के लिए इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है । कवि शिक्षा जैसे व्यापक विषय पर इस प्रकार का सरल, सुघटित, सुबोध, व्यावहारिक ग्रन्थ लिखना क्षेमेन्द्र की परिष्कृत एवं निर्भ्रान्त बुद्धि का द्योतक है। इस ग्रन्थ में 55 कारिकाएँ और 62 उदाहरण श्लोक हैं । यह पाँच संधियों में विभक्त है। इन पाँच सन्धियों के विषय इस प्रकार है तत्राकवेः कवित्वप्राप्तिः शिक्षा प्राप्तगिरः कवेः । चमत्कृतिश्च शिक्षाप्तो गुणदोषोद्गतिस्ततः ॥ पश्चात्परिचयप्राप्तिः इत्येते पंच संघयः प्रथम सन्धि - में कवित्वप्राप्ति के उपायों का विवेचन किया गया है। कवित्व प्राप्ति के लिए दिव्य तथा पौरुष उपाय कर्तव्य किये गये हैं कि जो क्रियामातृका का जय करेगा, वह कल्याण का भागी होगा क्योंकि जय से ही सरस्वती प्रसन्न होती है और प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करती है। 1 ww कवि ने शिष्यों का अल्प प्रयत्न साध्य, कृच्छसाध्य एवं असाध्य नामक तीन वर्ग किये हैं । प्रत्येक वर्ग के कवि को काव्य के निर्माण के लिए क्या क्या प्रयास करने इष्ट है उनका अवलोकन किया गया है। कृच्छसाध्य कवि को चाहिए कि प्रारम्भ में अभ्यास के तौर पर रचना भी करें, इस प्रकार की सूचना करके आचार्य क्षेमेन्द्र एक वाक्यार्थ शून्य पदरचना उद्धृत करते है । क्षेमेन्द्र ने कवित्व प्राप्ति के दिव्य उपायों का केवल नौ श्लोक में वर्णन किया है। और उसके बाद ही विषयों के वर्गीकरण के विषय का प्रतिपादन प्रारम्भ कर देते हैं । आठ क्षेमेन्द्र प्रथम सन्धि में ही शिष्यों को तीन प्रकारों में विभक्त करके उसके बाद उनका विवेचन करते हैं संक्षेप में किन्तु अपने आप में पूर्ण । यही 1. विभूषणाय महते तृष्णातिमिरहारिणे । नमः सन्तोषरत्नाय सेवाविषविनाशिनें ॥ सेव्यसेवकोपदेश, श्लोक । 2. कविकण्ठाभरण 1 / 3, 4 30
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy