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31. वेतालपंचविशंति - इस ग्रन्थ के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त नहीं होती है।
_32. व्यासाष्टक - भवनोजीत्य व्यास महर्षि की स्तुतिपरक आठ श्लोक। क्षेमेन्द्र की व्यास के प्रति अटूट आदर भाव था। इसका पता हमें इस अष्टक से होता है।
33. शशिवंश काव्य - इस महाकाव्य में शशिवंश राजाओं की कथाओं का वर्णन मिलता है। कविकण्ठाभरण की चमत्कार नामक तृतीय सन्धि में इसके पाँच श्लोक (14, 16, 23, 25, 55) उदाहरण के रूप में मिलते हैं।
____ 34, समयमातृका - यह उपदेशपरक काव्य है। इसमें वेश्याओं के पतनोन्मुख विलास और प्रलोभन की कथाएँ है। इसका रचनाकाल 1050 ई. है और यह 635 श्लोकों में निबद्ध है। इस काव्य के प्रथम पांच समयों के नाम हैं। चिन्तापरिप्रश्न, चरितोपन्यास, प्रदोषवेश्यालावर्णन, पूजाधरोपन्यास तथा रागविभागोपन्यास। षष्ठ समय का कोई नाम नहीं है। सातवें समय का नाम कामुकसमागम तथा आठवें समय का कामुकप्राप्ति नाम है। इस ग्रन्थ के उपसंहार में क्षेमेन्द्र ने वेश्या की सत्कविभारती के साथ जो तुलना की है उसको पढ़कर सहृदय उद्विग्न हो जाता है।'
35. सुवृत्ततिलक - क्षेमेन्द्र ने छन्दों के सौन्दर्य को ध्यान में रखकर शिष्यों के उपदेशार्थ यह ग्रन्थ लिखा है। छन्द के विषय में यह बहुत ही सुन्दर ग्रन्थ है। इसमें तीन विन्यासों के अन्तर्गत 124 कारिकाओं में लिखा है। क्षेमेन्द्र ने इस ग्रन्थ में सत्ताईस वृत्तों के लक्षणों के उदाहरण दिये हैं। द्वितीय विन्यास में उपयुक्त सत्ताईस वृत्तों का गुणदोष प्रदर्शन किया गया है। तृतीय विन्यास के प्रारम्भ में शास्त्र, काव्य, शास्त्रकाव्य तथा काव्यशास्त्र ये वाग्विस्तार के चार भेद किये गये हैं। उसके पश्चात् यह बताया गया है कि भिन्न - भिन्न रचनाओं के लिए कौन से वृत्त अनुकूल बैठते है और अन्त में प्राचीन कवियों में से कौनसा कवि किस वृत्त की रचना करने में विशेष पारंगत था ? यह बताया गया है। 1. संवत्सरे पंचविशे षौषशुक्ला दिवासरे। समयमातृकोपसंहार, श्लोक 2 2. सालंकारताय विभक्तिरूचिरच्छाया विशेषाश्रया
वक्रा सादर चर्वणा रसवती मुग्धार्थलब्धा परा। आश्रयों चितवर्णना नवनवास्वाद प्रमोदचिंता वेश्या सत्कविभारती व हरति प्रौढा कलाशालिनी ॥ समयमातृकोपसंहार, श्लोक 1