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14. दानपारिजात
होती है।
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15. नर्ममाला यह काव्य तीन परिहासों में विभक्त है। इसमें कवि ने कायस्थों के श्रमिणका, मठदैशिक, सभतृका, वैद्य, गणक आदि गुरुओं की बड़ी आलोचना की है। इस काव्य मेंकुल 407 श्लोक हैं ।
16. नीतिक ल्पतरू रचित राजनीतिपरक ग्रन्थ की
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि यह व्यास व्याख्या है।
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इस ग्रन्थ के विषय में कुछ जानकारी प्राप्त नहीं
17. पद्मकादम्बरी
है
यह बाणभट्ट की कादम्बरी का पद्यात्मक सारांश । इस काव्य के आठ श्लोक कविकण्ठा भरण सन्धि में पाये जाते हैं । यह निम्न श्लोक हैं
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15, 17, 20, 24, 26, 34, 37, 451
18. पवनपंचाशिका - यह लघुकाव्य है।' इसमें वायु का वर्णन किया गया है। इसमें कुल पचास श्लोक है ।
19. बृहत्कथा मंजरी - इस ग्रन्थ की रचना 1037 ई. में हुयी है । इस कृति में 19 अध्याय है और 7500 श्लोक हैं। कश्मीर की अनेक कथाएँ इनमें जोड़ी गई है। बृहत्कथा का ही संक्षिप्त रुप बृहत्कथामंजरी है।
20. बोद्धावदानकल्पलता - इसमें भगवान बुद्ध के प्राचीन जन्मों से सम्बद्ध पारमितासूचक आख्यानों का पद्य वद्ध वर्णन है। इस कल्पलता में 108 पल्लव हैं। जिनमें अन्तिम पल्लव का निर्माण पिता की मृत्यु हो जाने पर क्षेमेन्द्र के पुत्र सोमेन्द्र ने ग्रथित किया । एक वैष्णव कवि की कृति होने पर भी बौद्ध समाज में इतना आदर पाना क्षेमेन्द्र की धार्मिक उदारता, विशाल हृदयता, तथा सुन्दर काव्य शैली का पर्याप्त द्योतक है। 1272 में इस ग्रन्थ का तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था। यह तिब्बती भाषा का एक नितान्त श्लाघनीय अनुकरमीय और उदात्त काव्य माना जाता है । डॉ. कीथ की दृष्टि में यह ग्रंथ विषयदृष्टि से महत्त्वपूर्ण है रचना दृष्टि से नहीं ।
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21. भारतमंजरी - इस काव्य में महाभारत का सार प्रस्तुत किया गया है । इसमें 10665 श्लोक हैं। इसमें मूलभारत तथा हरिवंश का समावेश है । इनका संक्षेप इतने प्रभावपूर्ण ढंग से किया है कि हमें मनोरंजन के साथ मूल पाठ के निर्णय करने में भी सहायता मिलती है। इनके अनुशीलन से शिक्षण तथा आनन्द दोनों प्राप्त होते हैं । इस ग्रन्थ का प्रणयन 1037 ई. में हुआ है।
1. Minor works of Kshemendra, 1961, Introduction, P. 12
2.
Dr. A. B. Keith
A history of Sanskrit Literature, P. 493
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