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इस छोटे से ग्रन्थ में किया है। ग्रन्थ में कुल 39 कारिकाएं हैं, और उनमें आत्मरूप औचित्य तत्त्व के विलासस्थानों का उपवर्णन किया गया है। क्षेमेन्द्र का यह ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह औचित्य ही रस का जीवित भूत प्राण है तथा काव्य में चमत्कारकारी है। क्षेमेन्द्र ने इस औचित्य के अनेक भेद किये हैं पद, वाक्य, अर्थ, रस, कारक, लिंग, वचन आदि अनेक स्थलों पर औचित्य का विधान दिखाकर इसके अभाव को अन्यत्र बतलाकर क्षेमेन्द्र ने साहित्य रसिकों का महान् उपकार किया है।
औचित्य के बिना न तो अलंकार ही कोई शोभा धारण करता है और न गुण ही रूचिकर प्रतीत होता है। अलंकार और गुण के शोभन होने का रहस्य औचित्य के भीतर ही निहित है।
3. अवसरसार - यह अनन्तराजस्तुति परक लघुकाव्य है। इसके नाम के बारे में थोड़ा मतभेद है। क्षेमेन्द्र लघुकाव्य संग्रह में इस ग्रन्थ का नाम अवतारसार' दिया गया है।
4. कनकजानकी - भगवान् राम जी के वनवासोत्तर जीवन पर आधारित नाटक है।
5. कलाविलास - यह बड़ा रोचक काव्य है। इस काव्य में 551 श्लोक है। इन श्लोकों में दंभाख्यान, लोभवर्णन, कामवर्णन, वैश्यावृत्ति, कायस्थचरित, गायनवर्णन, मदवर्णन, सुवर्णकार की उत्पत्ति, नानाधूर्त वर्णन एवं सभी कलाओं का वर्णन नामक दस सर्गों में है।
6. कविकर्णिका - यह ग्रन्थ अलंकार के ऊपर लिखा था। इसका उल्लेख औचित्याविचार-चर्चा में मिलता है। उससे यह अनुमान होता है कि इस ग्रन्थ में काव्य के गुण दोषों का विचार होगा परन्तु यह ग्रन्थ अभी तक नहीं मिला है।
7. क्षेमेन्द्रप्रकाश - इस ग्रन्थ के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त नहीं होती
8. चतुर्वर्गसंग्रह - इसमें धर्मप्रशंसा, अर्थप्रशंसा, काम प्रशंसा तथा मोक्षप्रशंसा नामक चार परिच्छेद हैं। यह ग्रन्थ 106 श्लोकों में निबद्ध है। क्षेमेन्द्र ने शिष्यों के उपदेश के लिए और बुद्धिमानों के सन्तोष के लिए इस 1. Minor works of Kshemendra, 1961, Introduction P. 11 2. कृत्वापि काव्यालंकारां क्षेमेन्द्रः कविकर्णिकाम।
तत्कलंक विवेकं च विधाय विबुधप्रियम् ॥ ओचित्यविचारचर्चा, कारिका 2 3. उपदेशारा शिष्याणां सन्तोषाय मनीषिणाम् । क्षेमेन्द्रेण निजश्लोकैः क्रियते वर्गसंग्रहः॥
चतुर्वर्गसंग्रह,