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कृतित्व :
आचार्य क्षेमेन्द्र एक बहुप्रसु ग्रन्थकार थे । महाकवि क्षेमेन्द्र विदग्धों के ही कवि न होकर जनता के भी कवि हैं । उनकी वाणी ने भिन्न-भिन्न रूपों में विहार किया, वह कभी कवि के, तो कभी नाटककार के, कभी तत्त्वज्ञाता, कभी विलासी पुरुष, कभी साहित्य विमर्शक के परिवेष में सहृदयों के सामने आते हैं
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उनकी रचना का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जनता का चरित्र निर्माण भी है और वे अवश्य ही अपने उद्देश्यों की पूर्ति में पूर्णतः सफल है । इन्होनें कितने ग्रन्थों की रचना की यह कहना बहुत ही कठिन है । अनेक विद्वानों ने निश्चित संख्या को लेकर मतभेद पाया जाता है
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डॉ. सूर्यकान्त क्षेमेन्द्र के ग्रन्थों की संख्या चौंतीस बताते हैं। डॉ. काणे का कहना है कि क्षेएमेन्द्र ने भारतमञ्जरी एवं वृहत्कथामञ्जरी के अतिरिक्त चालीस ग्रन्थों की रचना की है ।
हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि क्षेमेन्द्र के ग्रन्थों की संख्या बत्तीस से चलीस के आस-पास माननी चाहिए ।
क्षेमेन्द्र के ग्रन्थों को हम चार श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं महाकाव्य : रामायणमञ्जरी, भारतमञ्जरी, वृहत्कथामञ्जरी, दशावतारचरित तथा अवदानकल्पलता ।
उपदेशविशेषोक्ति काव्यः कला विलास, समयमातृका, चारूचर्चा शतक, सेव्यसेवकोपदेश, दर्पदलन, देशोपदेश, नर्ममाला चर्तुवर्गसंग्रह । अलंकार ग्रन्थ : कविकण्ठाभरण, औचित्यविचार - चर्चा, सुवृत्ततिलक । प्रकीर्ण काव्य : लोक प्रकाश कोश, नीतिकल्पतरु तथा व्यासाष्टक । क्षेमेन्द्र की रचनायें :
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1. अमृततरडग यह लघुकाव्य है। इसमें देव पूर्वदेवकृत क्षीरसागर के मंथन पर आधारित है। इसका एक पद्य कविकण्ठाभरण की पंचम सन्धि में ( श्लोक 49 ) में है ।
2. औचित्यविचारचर्चा यह इनका सबसे मौलिक ग्रन्थ है। इसमें औचित्य के विचार की बड़ी ही सुन्दर व्याख्या की गयी है । काव्य में औचित्य की कल्पना का प्रथम निर्देश हमें भारत में उपलब्ध होता है। इसका विशदीकरण आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक में मिलता है। वहीं से स्फूर्ति ग्रहण कर ध्वनिवादी आचार्य क्षेमेन्द्र ने औचित्य के नाना प्रकारों का महत्त्वपूर्ण व सारगर्भित विवेचन
1. History of Sanskrit Poetics, 1961 Part I, P. 264
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