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समझते थे। अतः सम्भव है कि अनेक विशेषज्ञों की उन्होंने अपना गुरु माना
हो।
क्षेमेन्द ने अपने मडखक अभिनवगुप्त तथा सोमवाद नामक तीन गुरुओं का उल्लेख किया है। उन्होंने अभिनवगुप्त से साहित्य शास्त्र की शिक्षा ली। ये पहले शैव धर्म को मानने वाले थे परन्तु अपने जीवन की सन्ध्या में सोमपाद के द्वारा वैष्णव धर्म में दीक्षित किये गये अपने समस्त ग्रन्थों में इन्होंने अपना दूसरा नाम व्यासदास लिखा है।
शैव दर्शन के होते हुए भी इन्होंने अपने ग्रन्थों में विष्णु स्तुति की है। इससे स्पष्ट होता है कि भागवताचार्य सोमपाद का क्षेमेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा
इनका देहावसान 1066 ई. के बाद मानते हैं क्योंकि इनके अन्तिम ग्रन्थ दशावतारचरित की समाप्ति 1066 ई. में हुयी है।
डॉ. काणे एवं डॉ. सूर्यकान्त' भी इनकी मृत्यु का समय यही मानते
आचार्य क्षेमेन्द्र विभिन्न विषयों के ऊपर विपुल राशि प्रस्तुत करने वाले माननीय कल्पना के कारण सदा प्रख्यात रहेंगे। इनकी लेखनी ने सम्पूर्ण विश्व में अपनी चमक विखेर दी।
1. क्षेमेन्द्रनामा तनयस्तस्य विद्वत्सु विश्रुतः। दृहत्कथा मञ्जरी, श्लोक 36 2. काश्मीरेषु बभूव सिन्धुरधिकः सिन्धोश्च निम्नाशयः प्राप्तस्तस्यः गुणप्रकर्षयशसः
पुत्रः प्रकाशेन्द्रताम् । विप्रेन्द्रप्रतिपादितात्रदान धनभूगो संघ कृष्णाजिनैः प्रख्यातातिशयस्य तस्य तनयः क्षेमेन्द्रनामा भवत् । भरत कथा मञ्जरी के अन्त में (3.5) क्षेमेन्द्र ने अपने पिता के उपकार कार्यों का वर्णन किया है। 3. श्रुत्वाभिनवगुप्ताख्याविसाहित्यं बोधवारिधेः। आचार्य शेखरमणे विद्यातिवव्रतिकारिणः।
वृहत्कथामञ्जरी उपसंहार श्लोक - 37 4. श्री मदभगवताचार्य सोमपादान्जरेणुभिः। - वृहत्कथामञ्जरी श्लोक 38 5. इति श्री व्यासदासापराख्यक्षेमेन्द्रकृते कविकण्ठा भरणे कवित्वप्राप्तिः प्रथम सन्धिः।
औचित्य विचारचर्चा में भी ऐसे निर्देश मिलते हैं। 6. एकाधिके ऽव्दे विहितश्चत्वारिशे सकातिके ।
दशावतारचरितोपसंहारक, श्लोक - 5 7. History of Sanskrot Poetics, 1961, Part I P. 266 8. Kahemendra Studies, 1954, Chap. I P. 8
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