________________
57. सुमुखनाम चरं निदिदेश सभुवि सतां सहता हि दिशा दृश: ।
9/58
सन्तों की दिशा दृष्यि की दिशा स्वभावतः सदैव अनुकूल ही हुआ करती है। 58. तपति भूमितले तपने तमः परिहृतो किमु दीपपरिश्रमः ।
9/73
पृथ्वी पर सूर्य के अपने पूर्ण तेज से तपते रहते अन्धकार मिटाने के लिए क्या दीपक को थोड़े ही श्रम करना पड़ता है ?
59. भवति दीपकतोऽञ्जनवत् कृतिन् नियमा खलु कार्यकपद्धतिः । दीपक से कज्जल अतः कारण के अनुसार ही कार्य हुआ करता है, सर्वथा एकान्तिक नियम नहीं है।
ऐसा
60. उररीक्रियते न किं पिकाय कलिकाम्रस्य शुचिस्तु सम्प्रदायः । आम की मंजरी क्या कोयल के लिए अंगीकरणीय नहीं होती ? अपितु अवश्य अंगीकार्य होती है, यह पवित्र सम्प्रदाय सनातन है । 61. जगतां तुजुपायनोऽपि कृपः किमु नो वारिदवारिदक्षरूपः ।
12/86
कुआँ दुनियाँ की प्यास को मिटाने वाला होता है फिर भी वह बरसात के पानी को संग्रह करने में तत्पर रहता ही है ।
62. सरसः सुत तामृते कुतः श्रीः कमलिन्यै किल यत्पुनः सदस्त्रि ।
12/98
सरोवर कमलिनी की रक्षा करता है तो कमलिनी के द्वारा सरोवर की
शोभा होती है ।
63. विनयान्नास्त्यपरा गुणज्ञता वे ।
विनय से बढ़कर अन्य कोई गुण ग्राहकता नहीं है 1
64. कार्येऽस्तु भनग्विलम्बनम् ।
करने योग्य कार्य में विलम्ब करना अच्छा नहीं होता है ।
65. वंशिनः प्रत्युपकारशून्याः ।
उत्तम वंश वाले लोग प्रत्युपकार को भुला नहीं करते ।
66. विषममदं विषस्य भवतीति ।
विषं की औषधि विष ही होती है।
67. जंडप्रसङगे मोनं हि हितम् ।
जड़ मूखों के प्रसंग में मौन रह जाना ही हितकर होता है । 68. कलुषतामगादपि च जडानां पराभवः कष्टकरो नाना ।
12/31
290
12/100
13/6
13/105
14/39
14/77
14/84
1
मुग्धबुद्धि जनों को भी पराभव नाना कष्टों का करने वाला होता है 69. विपत्सु सम्पत्सवपि तुल्यतेवमहो तटस्था महतां सदेव ।
15/2
महापुरुषों की प्रवृत्ति संपत्ति और विपत्ति में सदा एक समान होती है । 70. कृतज्ञतां ते खलु निर्वहन्ति तमामसुभ्यो प्यमलास्तु सन्ति ।
15/3