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29. इष्टे प्रमेये प्रयतेत विद्वान् विधेर्मनः सम्प्रति को नु विद्वान् 13/85
विद्वान का कार्य है कि वह अपनी अभीष्ट सिद्धि के लिए प्रयत्न करता रहे। 30. योग्येन हि योग्यसङगमः।
.3/88 योग्य के साथ योग्य का सम्बन्ध ही सुशोभित हुआ करता है। 31. शोभते शोचिषां सार्थेस्तेजस्वी तपनोऽपि चेत।
सूर्य स्वयं तेजस्वी है, फिर भी किरणों के विना उसकी शोभा नहीं होती। 32. श्री चतुष्पथक उत्कलिताय कस्यचिद् व्रजति चिन्न हिताय। 4/7 ___ चोराहे पर धरे हुए रत्न को लेने के लिए किसका मन नहीं चाहता। 33. किंविधोः शरदि नाप्युपचारः।।
4/9 क्या शरद ऋतु में चांदनी की पूछ नहीं होती (होती ही है) 34. दुग्धतो हि नवनीतमुदेति गोस्तृणानि हि समादरणेऽति।
4/21 मक्खन गाय के दूध से ही निकलता है और विना आदर के गाय भी घास
नहीं खाती। 35. सविहाय हृदयं न गुणेभ्यः स्थानमन्यदुचितं खलु तेभ्यः। 4/26
क्षमादि गुणों के लिए ह्रदय को छोड दूसरा कौन सा स्थान उचित हो
सकता है। 36. धीमतामपि धिया किमसाध्यम्।
बुद्धिमान के लिए कौन सा कार्य कठिन है। 37. नानुवर्तिनि रवो प्रतियाते दीपके मतिरूदिते विभाते।
5/25 प्रात:काल के समय सूर्य के उदित होने पर दीपक को कौन याद करता है। 38. भानोरिव सोमकलां कुमुद्रतीकन्दसुकृतांशाः।
6/56 कुमुवती के पुण्यांश चन्द्रमा की कला को सूर्य से खींच लेते हैं। 39. याञ्चामिव निर्धनाज्जनों धनिनम्।
6/77 याचक जन अपनी याचना निर्धन मनुष्य के पास से हटाकर धनवान् के
पास ले जाते हैं। 40. मुनिजन इव संसार च्वेतोवृत्तिं निजां सुहिवाम्।
6/90 मुनि लोग परितृप्त चित्तवृत्ति को संसार से हटा लेते हैं। 41. किमु देवे विपरीते परूषाण्यपि पोरूषाणि स्युः।
6/97 जब दैव विपरीत हो जाता है तो क्या पुरुषार्थ भी व्यर्थ हो जाते है। 42. माकन्दक्षारकमिव कापि पिका सा मधो ख्याता। . 6/101
बसन्तऋतु में कोयल अन्य वृक्षों को छोड़ आम के बोर पर ही पहुँच जाती है।
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