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प्रथम परिशिष्ट जयोदय महाकाव्य में सुभाषित 1. किमन्यकैर्जीवितमेव यातु न याचितं मानि उपेति जातु समर्थवान मनुष्य अपना गौरव संभाले रखता है। भले ही जीवन समाप्त हो जाये वह कभी किसी से याचना करने नहीं जाता है ।
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2. अनुभवन्ति भवन्ति भवान्तकाः
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अगणित गुण जो विश्व में व्याप्त है वे ही समादर पाते हैं और संसार का अत करते हैं।
3. धान्यमस्ति न विना तृणोत्करम् धान्य भूखे के बिना नहीं होता है | 2/3 4. तवदूषरट के किलाफले का प्रसक्तिरुदिता निरर्गले
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औषधि के विना खुलजाने मात्र से दाद का रोग कैसे दूर हो सकता है अर्थात् कभी नहीं ।
5. किन्नु काकगतमप्युपा श्रयत्यत्र हंसवदकुण्चिताश्रयः
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क्या हंस की तरह कोई उदारचेता कभी कौए की भी चाल ग्रहण करता है अर्थात् कभी नहीं ।
6. सम्मता हि महतां महान्वयाः ।
7. प्रस्तरेषु मणयोऽपि हि क्वचित् ।
कहीं कहीं पाषाण में भी मूल्यवान रत्न मिल जाया करते हैं । 8. नेव लोकविपरीतमलिचतुं शुद्धमप्यनुमतिर्गृहीशितुः
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शुद्ध वात भी लोकविरुद्ध होने पर गृहस्थ लोग स्वीकार नहीं करते । 9. सर्वमेव सकलस्य नौषधम् ।
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सभी औषधियाँ सबके लिए उपयोगी नहीं होती ।
10. वार्षिकं जलपीह निर्मलं कथ्यते किल जनै: सरोजलम्
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वर्षा का निर्मल जल तालाब में एकत्र होने पर लोग उसे तालाब का जल ही कहते हैं ।
11. अज्ञता हि जगतो विशोधने स्यादना त्मसदनावबोधने ।
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अपने घर की जानकारी न रखते हुए दुनिया को खोजना अज्ञता हो होगी। 12. योग्यतामनुचरेन्महामतिः कष्टकृद्भवति सर्वतो ह्यति ।
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समझदार को चाहिए कि वह योग्यता से काम ले, क्योंकि अति सर्वत्र दुखदायी ही होता है ।
13. श्री प्रमाणपदवीं व्रजेन्मुदा वाग्विशुद्धिरुदितार्थशुद्धिदा । वचन की शुद्धि ही पदार्थ की शुद्धि की विधायक होती है ।
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