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________________ जयकुमार भगवान् आदिनाथ के समवसरण में ले जाते हैं। वे वहाँ वृषभदेव के पास जाते है। इसका कवि ने बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। जयकुमार ने संसार रुपी सागर के उत्तम तटस्वरुप भगवान् वृषभदेव के चरणरुप वृक्ष के स्थान को प्राप्त किया। वहाँ नमस्कार करते हुए उन्होंने सात्तिवक भाव के कारण झरती हुई चंचल आँखों से युक्त हो मनोहर मोती प्राप्त किये। भगवान् वृषभदेव के चरणों का सान्निध्य पाकर उनके नेत्रों से हर्ष के आँसू निकलने लगे। वे अश्रुकण मोतियों के समान जान पड़ते थे। ___ भगवान् वृषभदेव के प्रति अगाध भक्ति से उनके गुणों में चमत्कृति के दर्शन होते हैं। एक और बानगी देखिए - विधोरमृतमासाद्य सन्तापं त्यजतोऽर्कतः। पूरणाय प्रभातं च सन्ध्यानन्दीक्षितश्रियः।। जब जयकुमार ने सांसारिक सुखों का परित्याग करके दिगम्बर मुद्रा को धारण किया और मुनि बनने के लिए कठिन परिश्रम करने लगे। विधो : चन्द्रनामक वाम स्वर से अमृत - अमृत नामक प्राणायाम वायु को ग्रहण कर अर्कतः सूर्यनामक दक्षिण स्वर से रेचन वायु को छोड़ने वाले तथा साधुओं में शोभा सम्पन्न जयकुमार का प्रात:काल समीचीन ध्यान की पूर्ति के लिए हुआ था, अर्थात् समस्त कार्यो की सिद्धि के लिए हुआ था। रात्रि में विधु चन्द्रमा से अमृत लेकर दिन में सूर्य से संताप को छोड़ने वाले तथा आनन्दयुक्त जनों के द्वारा जिनकी शोभा अवलोकित है ऐसे जयकुमार के प्रभात और सन्ध्या दिन रात को पूर्ण करने के लिए होते थे, अर्थात् जब जयकुमार मुनि ध्यानारूढ होते थे तब रात्रि में चन्द्रमा उनके शरीर को शीतलता और दिन में सूर्य संताप पहुँचाता था, प्रात:काल और सन्ध्याकाल क्रमशः निकलते जाते थे। एक राजा होकर मुनिव्रत धारण करना बड़ा ही विचित्र है। अपने गुणों के कारण ही जयकुमार का चरित्र जगद्विख्यात है। जयकुमार के इस उदात्त चरित्र से कथावस्तु में चमत्कार है। 1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध, 28/61
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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