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जयकुमार उस देश में तुल्यता का अनुभव करते हुए स्नेह को प्राप्त हुए। तुल्यता निम्न प्रकार थी - जिस प्रकार जयकुमार सफ्रभविधेनुग सदाचारी जनों में विनयशील थी, उसी प्रकार वह देश भी सप्रभविधेयुग अच्छी नस्ल की गायों को प्राप्त था। जिस प्रकार जयकुमार वृषवत्सल-धर्मस्नेह से सहित थे, उसी प्रकार वह देश भी वृषसत्सल-बैल तथा बछड़ों को स्वीकृत करने वाला था तथा जिस प्रकार जयकुमार शस्यतोजयनसंश्रय - प्रशंसा योग्य देश से परमात्मा की आराधना के आधार थे, उसी प्रकार वह देश भी शस्यतोयजनसंश्रयधान्य, जल और मनुष्यों का आधार था। .. सदसि यदपि भूभुजां च मान्यः सेवक इव खलु भुवो भवान्यः।
आत्मानं पश्यतोऽपि तस्य नान्यः कोऽपि बभूत दृशि ज्ञस्य॥
जो राजा जयकुमार निश्चय से पृथ्वी के सेवक के समान थे अर्थात् सब लोगों के सुख-दु:ख में सम्मिलित हो उनका दुःख दूर. करते थे, वे. राजाओं की सभा में सम्माननीय थे और जब वे सन्ध्या वन्दनादि के समय आत्मावलोकन करते थे तब उस ज्ञानी राजा की दृष्टि में कोई दूसरा नहीं रहता था, सबको वे अपने समान ही देखते थे। प्रसिद्ध भी है
जो सबको अपने समान देखता है वही पण्डित, ज्ञानी कहलाता है। इसमें प्रख्यात पुरुष जो जयकुमार हैं उनके चरित्रोत्कर्ष से कथांश में चमत्कार
एक मनोहारी उदाहरण द्रष्टव्य है -
गिरं विचारेण गिरा श्रियं श्रिया सुलोचनामात्मवशं नयनयम्। मिथः प्रतिष्ठाप्रदया दयाश्रयस्त्रिवर्गशक्त्या स रराज राजघः॥
अनीतिकारक शक्ति सम्पन्न राजाओं को नष्ट करने वाले राजाधिराज तथा दया के आधारभूत जयकुमार विचार से वाणी को, वाणी से लक्ष्मी को और श्री शोभा से सुलोचना को अपने वश में करते हुए परस्पर सापेक्ष त्रिवर्ग शक्ति से सुशोभित हो रहे थे। "
____ जयकुमार ने अपनी तर्कशक्ति के द्वारा सब को सम्मानित किये हुए थे तथा धर्म, अर्थ, काम त्रिवर्ग को भोग रहे थे।
जयकुमार की चारित्रिक विशेषताओं से जयोदय महाकाव्य की कथावस्तु में चमत्कार आ गया है। 1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध 22/26 2. वही, 23/4