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________________ . अध्यात्मविद्यामिव भव्यवृन्दः - सरोजराजिं मधुरा मिलिन्दः। 'प्रीत्या ययौ सोऽपि तकां सुगौर - गात्रीं यथा चन्द्रकलां चकोरः॥ . जब जयकुमार व सुलोचना को पाणिग्रहण संस्कार के लिए विवाह मण्डप में लाया जाता है तब जयकुमार ने सुलोचना को उसी प्रकार देखा जिस प्रकार मुक्ति के इच्छुक भव्यजीवों का समूह अध्यात्मविद्या को, भ्रमर जैसे कमल पंक्ति प्राप्त करके, तथा चकोर पक्षी जैसे चन्द्रमा की कला पाकर प्रेम से पीता है वैसे ही उस जयकुमार ने उस सुन्दराङगी सुलोचना को प्रेम से पिया अर्थात् अत्यधिक आदरपूर्वक देखा। यहाँ प्रख्यात स्त्री पुरुष सुलोचना व जयकुमार के प्रणय चित्रण से कथावस्तु में चमत्कार है। . अस्या हि सर्गाय पुरा प्रयासः परः प्रणामाय विधेर्विलासः। . स्त्रीमात्रसृष्टावियमेव गुर्वी समीक्ष्यते श्रीपदसम्पदुर्वी।।. इस सुलोचना के निर्माण के लिए निश्चय ही पूर्वकाल में निर्मित स्त्रियों की सृष्टि में ब्रह्मा को महान् प्रयास करना पड़ा, उसी प्रयास से दक्षता को प्राप्त कर इस अनुपम सुलोचना की रचना की। सुलोचना को प्रणाम करने के लिए भविष्य में स्त्री सृष्टि के लिए अगला प्रयास ब्रह्मा का विलासमात्र होगा, विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। यह सुलोचना लक्ष्मीपद की शोभा के लिए आश्रय भूमि है और यही स्त्रीमात्र की सृष्टि में सर्वोत्तम प्रतीत हो रही है। यह स्त्रियों में सर्वोत्तम रत्न, है। इसके समक्ष कोई दूसरी स्त्री नहीं है। सुलोचना.के.,अलोकसामान्य सौन्दर्य वर्णन से कथावस्तु में चमत्कार आ गया है। एक अन्य उदाहरण द्रष्टव्य है - · गुणिनो गुणिने त्रयीधराय मृदुवंशाय तु दीयते वराय। । त्रिविशुद्धिमता मया जयाय ह्यसको कर्मकरी शरीव या यत्॥ . तन्नया विनयन्वितेति राज्ञः नयमाकर्ण्य समर्थनेकभाग्यः। कृतवास्तदिति प्रमाणमेव वरपक्षो गुणकारि सम्पदेऽवन्। हे सज्जनो! त्रयी विद्या के जानने वाले और उत्तम वंश वाले ऐसे इस 1. जयोदयमहाकाव्य, पूवार्ध, 10/118 2. वही, 11/84 3. वही 12/29-30 2088800000000000000003888888888888886000000000 2 710)
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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