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जब सुलोचना जयकुमार का वरण करती है तब राजाओं की क्या दशा होती है उसका इसमें वर्णन है -
जब सुलोचना ने उत्तम स्नेह की दशा से विशिष्ट सोमकुल के दीपक जयकुमार को प्राप्त कर लिया तो उसी समस दूसरे राजाओं के मुखों पर सहज में ही गाढ़ अंजन ने अपनी सत्ता जमा ली, अर्थात् उनके मुख काले पड़ गये।
यहाँ पर कवि ने जयकुमार को सोमकुल का दीपक बतलाया है, दीपक में तेल और बत्ती हुआ करती है। यहां भी स्नेह तेल का नाम है और दशा बत्ती का नाम है। उससे शराब में काजल लगता ही है। एक और मनोहारी उदाहरण देखिए -
किञ्च मेघसहितप्रभोऽव्रणी खेचरैः कतिपयैः खगाग्रणाः।
मेघनाथकतयैवेव तं तदाऽवाप्य तत्र सहकारितामदात्॥
जब जयुकमार व अर्ककीर्ति के युद्ध की घोषमा रुयी तब मेघप्रभ नाम का राजा जयकुमार के शौर्यादि गुणों से प्रभावित होकर उसकी सेना में मिल गया। वह मेघप्रभ नामक विद्याधर जो कि बड़ा शक्तिशाली, दोष रहित और विद्याधरों का मुखिया था, अपने योद्धाओं के साथ जयकुमार से आ मिला और उसकी सहायता करने लगा, क्योंकि जयकुमार मेघेश्वर था।
जयकुमार के पराक्रम की ख्याति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मं व्याप्त थी। जिसके वीरतापूर्ण कार्यों से जयोदय महाकाव्य में चमत्कृति व्याप्त हो गयी है।
एक अन्य उदाहरण देखिए - निर्गमेऽस्य पटहस्य निःस्वनो व्यानशे नभसि सत्वरं घनः। येन भूभ्रदुभयस्य भीमयः कम्पमाप खलु सत्तवसञ्चयः।।
जब जयकुमार सजधज के युद्ध के लिए प्रयाण करता है, तो उसकी भेरी की तेज आवाज शीघ्र ही सारे ब्रह्माण्ड में फैल गयी। फलतः दोनों तरफ के भूभृतों (राजाओं और पर्वतों का) सत्व संचय (आत्मभाव और प्राणिवर्ग) निश्चय ही भयभीत होकर काँपने लगा।
__ जयकुमार के चरित्र पर आधृत इस कथावस्तु में पराक्रम और वीरतापूर्ण कार्यों से चमत्कार आ गया है।
प्रख्यातवृत्त चमत्कार का ललित उदाहरण देखिए - 1. जयोदयमहाकाव्य, पूवार्ध, 7/89 2. वही, 7/97