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________________ स्वभावतः गुण और दोष का विवेक करने वाला था। इसी प्रकार राजहंस चांदी के पात्र की तरह श्वेतवर्ण का होता है वैसे ही यह राजा भी राजतत्व का पण्डित है। इससे हमें जयकुमार के विवेकवान् होने का परिचय मिलता है। इनसे कथानक में चमत्कार उत्पन्न होता है। समुदङ्गः समुदगाद् मार्गलं मार्गलक्षणम्। नरराद पररावैरी सत्वरं सत्तवरञ्जितः॥ इसमें उस समय का वर्णन है जब जयकुमार स्वयंबर सभा के लिए काशी प्रस्थान करते हैं। प्रसन्नचित्त दूसरे राजाओं का शत्रु साहसी और बलवान् वह जयकुमार काशी गमन रुप वांछितसिद्धिरुप लक्ष्मी के बाधक मार्ग को शीघर ही पार कर गया। प्रख्यात पुरुष जयकुमार के चरित्र पर आधृत इस कथांश में चमत्कार है एक और बानगी द्रष्टव्य है - वाजिनं भजति तु भजति मुञ्चति कोषं च मुञ्चति हयरातिः। त्यजति क्षमां त्यजत्यपि बद्धैर्योऽस्मिन् यथा ख्यातिः।। बुद्धिदेवी सुलोचना को स्वयंबर सभा में जयकुमार की वीरता का गुणगान करती हुयी कहती है - यह राजा जब प्रयाण के लिए घोड़े पर चढ़ता है तो इसका वेरी भी भयवश आत्मरक्षार्थ जिन भगवान् को भजने लगता है। जब वह कोष (म्यान) को तलवार निकालकर फेंक देता अर्थात् तलवार को नंगी कर बताता है तो वेरी भी अपना कोष (खजाना) त्याग देता है। इसी प्रकार जब यह क्षमा त्याग कर रुष्ट होता है, तो इसका वेरी भी क्षमा (पृथ्वी) छोड़ देता है। इस तरह जैसा यह राजा करता है मानो स्पर्धावश इसका वेरी भी वैसा ही करता है। - जयकुमार के पराक्रम से कथावस्तु में चमत्कार उत्पन्न होता है। अभ्याप सुस्नेहदशाविशिष्टं सुलोचना सोमकुलप्रदीपम्। मुखेषु सत्तां सुतरां समाप सदञ्जनं चापरपार्थिवानाम्।। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूवार्ध, 3/109 2. वही, 6/111 3. वही, 6/131
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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