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________________ यहाँ प्रख्यात पुरुष चरित्र पर आधृत कथाश में चमत्कार है। एक और बानगी द्रष्टव्य है - यस्य प्रतापव्यथितःपिनाकी गडगमभडगां न जहात्यथाकी। पितामहस्तामरसान्तराले निवासवान् सोऽप्यभवद्विशाले॥ रसातले नागपतिर्निविष्टः पयोनिधो पीतपट: प्रविष्टः। अनन्यतेजाः पुनरस्ति शिष्टः को वेह लोके कथितोऽवशिष्टः।। इस प्रकार हाथ में खड्ग उठाने के अनन्तर महाराज जयकुमार के तेज से पीड़ित, अतएव दु:खी हो शङ्कर नित्य प्रवाहित होने वाली गंगा को कभी नहीं छोड़ते। पितामह ब्रह्मदेव ने विशाल कमल में डेरा जमा लिया। शेषनाग पाताल में जा छिपा। पीताम्बर धारी विष्णु समुद्र में जाकर सो गये। अथवा इस संसार में कौन ऐसा बचा हुआ है जो इसकी तरह बेजोड़ तेज वाला है। जयकुमार के तेज से कथावस्तु में चमत्कार उत्पन्न हो गया हैं। अन्य निदर्शन अवलोकनीय है - भवाद्भवान भेदमवाप चडगं भवः स गौरी निजमर्धमडगम्। चकार चादो जगदेव तेन गौरीकृतं किन्तु यशोमयेन।। कवि जयकुमार के चरित्र का यशोगान करते हुए कहते हैं कि यह राजा महादेव से भी बहुत बड़ा चढ़ा हुआ था, क्योंकि महादेव तो अपने आधे अङग को ही गौरी (पार्वती) बना सके, किन्तु इस राजा ने तो अपने अखण्डयश द्वारा सम्पूर्ण जगत को ही गौरी कर दिया अर्थात् उज्जवल बना दिया। यहाँ जयकुमार के यशस्वी व्यक्तित्व के वर्णन में चमत्कार है। एक अन्य निदर्शन देखिए - प्रवर्तते किञ्च मतिर्ममेयं नभस्यभूद्र व्याप्ततयाऽप्यमेयम्। तेजः सतो जन्मवतोऽग्रवति नायितं तद्रवितामियति।। जयकुमार के वृत्तगत चमत्कार से इस श्लोक में भी लालित्य आ जाता मेरी (कवि की) बुद्धि तो ऐसा मानती है कि उन राजा जयकुमार का तेज सारे आकाश में फैलकर भी कुछ शेष बच गया था, जो इकट्ठा होकर 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1/8-9 2. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1/15 3. वही, 1/23
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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