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अष्टम अध्याय
प्रख्यातवृत्त चमत्कार तथा जयोदय
प्रख्यातवृत्त चमत्कार प्रख्यातवृत्त चमत्कार उसे कहते हैं जहाँ पर प्रख्यात व्यक्ति के चरित्र पर आधृत कथावस्तु में चमत्कार है, जिससे उसका कथांश प्रभावपूर्ण हो जाये । यह काव्य के प्रख्यात विषय में रहने वाला चमत्कार है । जयोदय महाकाव्य की कथा भी ऐतिहासिक व प्रख्यात है । इसके यशस्वी नायक़ जयकुमार के चरित्र से कथानक और भी समुज्जवल व चमत्कारपूर्ण हो गया है।
प्रख्यातंवृत्त का चमत्कार देखिए
पुरा पुराणेषु धुरा गुरुणां यमीश इष्टः समये पुरुणाम् । श्रीहस्तिनागाश्रयणश्रियो भूर्जयोऽथ योऽपूर्वगुणोदयोऽ भूत ॥
प्राचीन काल में पुराणों में प्रसिद्ध आचार्यो में प्रधान भगवान जिनसेन ने श्रीवृषभदेव तीर्थडकर के समय संयमियों के रुप में जिसे चाहा अपूर्व गुणों से सम्पन्न वे जयकुमार महाराज हस्तिनापुर का शासन कर रहे थे । अर्थात् हस्तिनापुर के नरेश थे ।
अलंकार का अर्थ महादेव करने का यह अर्थ होगा कि वह राजा महादेव के तुल्य गुणों से समन्वित था इसी तरह श्री: पार्वती, हस्तीगणेश, नाग:- शेष तीनों के पुर अर्थात् शरीरों की शोभा के स्वामी यह रुद्रपक्ष में अर्थ होगा। वह गुणों में महादेव के समान था।
जयकुमार की कथा का प्रख्यात होना इस श्लोक से ज्ञात होता है । अन्य उदाहरण देखिए तनोति पूते जगती विलासात्स्मृता कथा याऽथ कर्थ तथा सा । स्वसेविनीमेव गिरं ममाऽऽराव पुनातु नाऽतुच्छरसाधिकारात् ॥
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जयकुमार की कथा की उपयोगिता बताते हुए कवि कहते हैं कि जयकुमार की जो कथा लालावश स्मरण मात्र से इहलोक और परलोक दोनों लोकों को पवित्र कर देती है वह उसी कथा की सेवा करने वाली मेरी वाणी को नवरसों के विपुल अनुग्रह द्वारा शीघ्र ही क्यों न पवित्र करेगी अर्थात् अवश्य करेगी।
1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1/2 2. वही, 1/4
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