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________________ जयकुमार को अपना पूर्वजन्म क्या प्राप्त किया था, मानों अलब्ध पूर्व सुन्दरी ही प्राप्त की थी। उसे पाकर रमण करने के लिए मानों लज्जावश परदा रूप मूर्छा को स्वीकृत किया था। प्रभावती रूप में ज्ञान होना आलम्बन विभाव है, जन्म स्मरण उद्दीपन विभाव, इच्छाएँ व्यभिचारी भाव है। विषमय स्थायी भाव से अद्भुत रस की प्रतीति होती है।. .. अद्भुत रस का चमत्कार द्रष्टव्य है - कमनः शमनन्दिनामुनाऽपहतास्त्रसत्वनुकम्पयाऽधुना। समिताश्च मिताः सुमश्रेयामृतवस्तद्धितवस्तुदित्सया॥ राजा जयकुमार ने अपने पुत्र अनन्तवीर्य का राज्याभिषेक करके उसे राजनीति सम्बन्धी ज्ञान दिया, उसके पश्चात् वे भगवान् आदिनाथ के समवसरण गए व उसका वर्णन। वहाँ सभी ऋतुएँ एक साथ प्रकट हुई थी उससे ऐसा जान पड़ता था कि शान्ति में आनन्द की अनुभूति करने वाले अर्हन्त भगवान् कामदेव को शस्त्ररहित कर दिया था, अब करुणाबुद्धि से उसकी हितकारी वस्तु देने की इच्छा से पुष्पों की शोभा में पूर्णता को प्राप्त छहों ऋतुएं मानों एक साथ आई इसमें समवसरण मण्डप आलम्बन विभाव है, रोमांच अनुभाव है। एक अन्य उदाहरण देखिए - समवसरणमेवं वीक्षमाणोऽथं देवं . गुणमणिमनुलेभे हर्षमेतेन रेभे। ___ पुलककुलकशंसा अन्तरेनोदुरंशाः सपदि बहिरूदीर्णा पुण्यपाकेऽवतीर्णात्॥. समवसरण में पहुँचने के पश्चात् वह आदिनाथ के चरणों के सानिध्य में गये। इस प्रकार समवसरण को अच्छी तरह देखते हुए जयकुमार गुणरुपी मणियों से सहित भगवान् आदीश्वर को प्राप्त हुए, अर्थात् उनके समीप पहुँचे। इसलिए उन्होंने बहुत भारी हर्ष प्राप्त किया और उस हर्ष से उनके शरीर में रोमांच निकल आये। वे रोमांच ऐसे जान पड़ते थे मानो पुण्योदय में अवतीर्ण 1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध, 26/47 2. वही, 26/68 (259)
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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