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इस श्लोक में हाथ पैर कटे आलम्बन विभाव है, उनको देखना उद्दीपन विभाव है। शून्यता मोह व्यभिचारी है। जुगुप्सा स्थायी भाव होने से बीभत्स रस की अभिव्यक्ति हो रही है।
बीभत्स का चमत्कार द्रष्टव्य है -
पित्सत्सपक्षाः पिशिताशनायायान्तस्तदानीं समरोर्वरायाम। चराश्च पूत्कारपराः शवानां प्राणा इवाभुः परितः प्रतानाः॥
युद्ध के उपरान्त युद्ध भूमि में गिद्ध शवों का मांस निकाल कर खा रहे हैं। वे हमें बीभत्स रस की प्रतीति करा रहे हैं। उस समय उस समरभूमि में पक्षियों के समूह वहाँ मांस खाने के लिए आये थे। वे उन शवों पर ऐसे प्रतीत होते थे मानों फूत्कारपूर्वक. निकलते उनके प्राण ही हों।. . : .
__ इसमें शव दर्शन आलम्बन विभाव है, गिद्धों के द्वारा मांसादि भक्षण उद्दीपन रुप से चित्रित है, ऐसा भयानक दृश्य देखकर आँखे बन्द करना अनुभाव है। व्याधि, आवेग संचारी भाव है। जुगुप्सा स्थायी भाव होने से बीभत्स रस है। अद्भुत रस -
नभः सदां तं विचरन्तभुज्जवलं विहायसा व्योमरथं विलोकयन्। . प्रभावतीत्युक्तवचा विचक्षणो मुमूर्च्छ जातिस्मरणं जयो व्रजन॥ ।
जयकुमार व सुलोचना अपनी छत पर बैठे थे, उस समय उन्होंने आकाश में देव विमान देखा, उसको देखकर उनको पूर्व जन्म का स्मरण होते ही जयकुमार को अवधि ज्ञान, व सुलोचना को जाति स्मरण।
विचारशील जयकुमार वहां आकाश मार्ग से जाते हुए विद्याधरों के विमान को देखकर जातिस्सरण को प्राप्त हुए तथा प्रभावती यह वचन कहकर मूर्छित हो गये।
__इस श्लोक में देवविमान का दर्शन आलम्बन विभाव है, पूर्व जन्म का स्मरण उददीपन विभाव है, मूर्छित होना अनुभाव है, चिन्ता होना व्यभिचारी भाव है। विस्मय स्थायी भाव होने से अद्भुत रस निष्पन्न होता है।
अद्भुत रस का सौन्दर्य दर्शनीय है - जयोऽथ जातिस्मृतिमेव ता प्रियामलब्धसूर्वामिव सुन्दरी श्रिया।
उपपेत्य रन्तुं परदाभिदा हिया बभार मूच्र्छामपि चावृतिक्रियाम्।। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 8/39 2. वही उत्तरार्ध 23/10 3. वही, 23/11