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एकदम साहस कर उठा और उसने दूसरे भट के पैर पकड़ कर उसे आकाश में उछाल दिया।
इस श्लोक में वीर पुरुष आलम्बन विभाव है। जमीन पर गिरना उद्दीपन विभाव, साहस कर उठना अनुभाव है, चपलता पूर्वक उछालना व्यभिचारी भाव है। उत्साह स्थायी भाव होने से वीर रस की पुष्टि होती है।
एक अन्य रमणीय निदर्शन देखिए -
रणोऽनणीयाननयो रभावै सदिव्यशस्त्रप्रतिशस्त्रभावैः। समुत्स्फुरद्विक्रमयोरखण्डवृत्तया तदाश्चर्यकरः प्रचण्डः॥
उस समय प्रस्फुरित बलशाली उन दोनों सूनमि अर्ककीर्ति की ओर से और मेघप्रभ जयकुमार की तरफ से दोनों का बड़े वेग से दिव्य शस्त्र और प्रतिशस्त्रों द्वारा अखण्डवृत्ति से बड़ा ही आश्चर्यकारी प्रचण्ड घोर युद्ध हुआ।
___ जयकुमार व अर्ककीर्ति आलम्बन विभाव, दोनों योद्धाओं का युद्ध उद्दीपन विभाव है, युद्ध में प्रवृत्त होना अनुभाव है। क्रोध व्यभिचारी भाव है तथा उत्साह स्थायी भाव होने से वीर रस निष्पन्न होता है।
वीररस की एक और बानगी - रथसादथ सारसाक्षिलब्धपतिना सम्प्रति नागपाशबद्धः। शुशुभेऽप्यशुभेन चक्रितुक् तत्तमसा सन्तमसारिरेव भुक्तः॥
जब जयकुमार व अर्ककीर्ति का परस्पर युद्ध होता है और जयकुमार विजय श्री को प्राप्त करता है तथा वह अर्ककीर्ति को पराजित करके अपने रथ में डाल लेता है। उस समय नागपाश में बांधकर जयकुमार ने अर्ककीर्ति को अपने रथ में डाल दिया। उस समय वह ऐसा प्रतीत हो रहा था कि राहु द्वारा आक्रान्त सूर्य ही हो। जैसे नागरपाश तो राहु हुआ और अर्ककीर्ति हुआ सूर्य ।
आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव व व्यभिचारी भाव के माध्यम से व उत्साह नामक स्थायी भाव होने से वीर रस के दर्शन होते हैं।
भयानक रस -
जयोदय महाकाव्य का यह सुन्दर श्लोक भयानक रस की अभिव्यक्ति करता है -
प्राप्य कम्पननमकम्पनो हृदि मन्त्रिणां गणमवाप संसदि
विग्रहग्रहसमुत्थिव्यथः पान्थ उच्चलति किं कदा पथः॥ 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 8/73 2. वही, 8/81 3. वही, 7/55
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