________________
हास्य का मनोहारी उदाहरण -
अथं कम्पनाधिनाथो भवेद् भवानेव देव भूमितले।
भवदपरः कश्च नरोऽकम्पनसुततां व्रजेद् बन्धो॥ जयकुमार व सुलोचना अपनी सेना सहित जब विदा होकर हस्तिनापुर पहुँचते हैं तब उनके साथ हेमाङगद आदि साले भी होते हैं। वहाँ पर हेमाङगद आदि सालों के साथ जयकुमार की विनोदगोष्ठी चल रही है। किसी ने जयकुमार से कहा कि हे देव इस भूतल. पर आप ही कम्पन भीरूता के अधिनाथ स्वामी हैं तथा कम्पनरुप आधिमानसिक व्यथा के नाथ हैं। जयकुमार ने कहा हे बन्धो आपके सिवाय दूसरा कौन मनुष्य अकम्पन सुतता-यमराज के पुत्र क प्राप्त हो सकता है ? अर्थात् मैं तो कम्पन का ही अधिनायक हूँ पर आप तो अकम्पन यम के पुत्र होकर उसके उत्तराधिकारी बन रहे हैं। आपके सिवाय अकम्पन काशी नरेश की पुत्रता को कौन प्राप्त हो सकता है।
यहाँ पर अकम्पन का दूसरा अर्थ यम लिया गया है। हास्योत्पादक विभावों, अनुभावों एवं संचारी के वर्णन से हास्य रस की व्यजंना होती है। करुण रसः -
मृताडगनानेत्रपयः प्रवाहो मदाम्भसा वा करिणां तदाहो। योऽभूच्चयोऽदोऽस्ति ममानुमानुमदगीयतेऽसो यमुनाभिधानः।।
अर्ककीर्ति व जयकुमार के बीच महायुद्ध हो रहा था। दोनों सेनाओं के लोग मर रहे थे। उस समय युद्ध भूमि का वातावरण बड़ा दयनीय था।
। उस समय मृत शत्रुवीरों की स्त्रियों के आसुओं का जल अथवा हाथियों के मदजल का समूह बहा, आश्चर्य है कि वही यमुना नदी के नाम से आज कहा जाता है, ऐसा मेरा अनुमान है। ,
___ इस श्लोक में मृत शत्रु आलम्बन विभाव है, उनका दर्शन उद्दीपन है, स्त्रियों के नेत्रों से आसुओं का निकलना अनुभाव है। चिन्ता व्यभिचारी भाव है। शोक स्थायी भाव होने से करुण रस की अभिव्यक्ती होती है। करुण रस की एक और बानगी दर्शनीय है -
तनये मन एतदातुरं तव निर्योगविसर्जने परम।
ललनाकलनाम्नि किन्त्वसौ व्यवहारोऽव्यवहार एव भोः।। 1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध, 21/83 2. वही, 8/40
3. जयोदय पूर्वार्ध 13/9,10
3000
251