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कि रस नौ ही होते हैं। एवं ते नयैवरसाः। न कम और न ज्यादा। रूद्रट ने स्वीकृत संख्या में प्रेयान् रस की वृद्धि की है।
श्रृंगारवीरकरुणा बीभत्सभयानकाद्भुता हास्यः।
रौद्र शान्तः प्रेयानिति मन्तव्या रसाः सर्वे॥ विश्वनाथ वात्सल्य को रस मानने के पक्षधर है। साहित्य में रस की महत्ता है। लौकिक संस्कृत का प्रथम श्लोक जो क्रोचवध के शोक भावना के अधिक भर जाने पर आवेश के कारण वाल्मीकी का शोक श्लोक में परिणत हो गया वह रसमय ही था।
रस को सब सम्प्रदायों ने अपनाया है। रस काव्य का प्राणतत्व है काव्य का जन्म ही रस दशा में हुआ था।
काव्यशास्त्रियों के मतानुसार नव प्रकार के स्थायी भाव हैं और उन्हीं भावों के अनुसार 9 रस है। रस .
स्थायी भाव श्रृंगार
रति
हास्य
हास
करुम
शोक क्रोध
रौद्र वीर
उत्साह .
भयानक
भय
अद्भुत
वीभत्स .
जुगुप्सा
विस्मय शान्त
निर्वेद आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपने जयोदय महाकाव्य में सभी रसों का प्रयोग किया है। लेकिन शान्त रस महाकाव्य का अंगीरस है। शेष श्रृंगारादि रस अंग रस के रुप में प्रयुक्त हुए है। श्रृंगार रस
श्वशुरालयवर्तिनो निजे पतितां दृग्भ्रमरी मुखाम्बुजे।
अवरोधुमिवावगुण्ठतः सुदूगाच्छादयदप्यकुण्ठतः।। 1. हिन्दी अभिनवभारती, पृ. 640 2. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 10/70