________________
सप्तम अध्याय में रसगत चमत्कार की दृष्टि से जयोदय महाकाव्य का अनुशीलन किया गया है।
अष्टम अध्याय में प्रख्यात वृत्तगत चमत्कार की दृष्टि से इस महाकाव्य की समालोचना की गयी है।
नवम अध्याय उपसंहार में गवेषणाप्रसूतनिष्कर्षों को देकर संस्कृत काव्य जगत् में श्री मुनि ज्ञानसागर जी और उनके जयोदय काव्य का मूल्यांकन किया गया है।
___ इस प्रबन्ध में तीन महत्त्वपूर्ण परिशिष्टों का समावेश है। प्रथम परिशिष्ट में जयोदयकार के विषय में अभिव्यक्त किये गये विद्वानों के विचारों का संकलन है।
द्वितीय परिशिष्ट में जयोदय महाकाव्य में समुपलब्ध मनोरम सदुक्तियों का संग्रह है। तृतीय परिशिष्ट में अपने शोध-प्रबन्ध के लेखन में सहायक प्रमुख - प्रमुख ग्रन्थों की सूची दी गई है। आभार प्रदर्शन . भूगर्भ स्थित यक्षरक्षित अनेक रत्नमयी जिन चैत्याल्यो को प्रगट करने वाले ज्ञानतप में लीन आध्यात्मिक सन्त मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज की प्रेरणा आशीर्वाद से यह शोध प्रबन्ध पूर्ण होकर साहित्य जगत की पंक्ति में स्थापित हो सका। आपका किन शब्दों में आभार व्यक्त करु, आप तो सूर्य है, मैं तो दीपक लेकर आरती उतार सकता हूँ।
इस शोध - यात्रा को गन्तव्य तक पहुँचाने में अनेक महानुभावों का योगदान रहा है। सर्वप्रथम में अपनी शोध पर्यवेक्षिका श्रीमती डॉ. प्रमोद बाला मिश्रा, रीडर, संस्कृत-विभाग, बरेली कॉलेज, बरेली के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ जिन्होंने समय-समय पर मुझे पाण्डित्यपूर्ण मार्गदर्शन करके मेरी शोध सम्बन्धी शास्त्रीय शंकाओं, उलझनों को दूर करती रही।
___ डॉ. रामजीत मिश्र, रीडर एवं अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, बरेली कॉलेज, बरेली के प्रति आभार प्रकट करती हूँ जिन्होंने समय :- समय पर जैन दर्शन सम्बन्धी जानकारी दी।
डॉ. अरूण कुमार जैन, शास्त्री निदेशक - आचार्य ज्ञान सागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, ब्यावर (राज.) के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ जिन्होंने पत्राचार के माध्यम से आचार्य ज्ञान सागर जी के सभी ग्रन्थ एवं कृतियों को उपलब्ध कराकर
38800388%8800388888888888888888
2
0
8888888560022