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________________ दार्शनिकता भी कूट - कूट कर भरी हुयी है। जैन संस्कृत काव्यप्रकाश में मुनि ज्ञानसागर जी का उदय लगभग छ: सौ वर्षों बाद लगभग ऐसे महाकवि के रूप में हुआ जिसने महाकाव्य लिखने की विच्छिन्न परम्परा को पुनर्जीवित किया। ___अलंकार और रसों से परिपूर्ण यह महाकाव्य बृहत्त्रयी में स्थान पाने योग्य है। इसमें वन - क्रीड़ा, जल - क्रीड़ा, सूर्योदय, चन्द्रोदय, प्रभातवर्णन, रात्रिवर्णन, पान गोष्ठी, वैवाहिक गोष्टी, पर्वत, नदी आदि प्रसंगों का मर्म स्पर्शी वर्णन है। इस महाकाव्य में प्राचीन ऋषि मुनियों के आदर्श की परम्परा का निर्वाह करते हुए वर्तमान परिस्थिति की उलझनों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत प्रबन्ध के प्रथम अध्याय में आचार्य क्षेमेन्द्र के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व का निरूपण करते हुए उनके कविकण्ठाभरण पर विस्तृत परिचय दिया गया है। इसी अध्याय में चमत्कार के स्वरूप पर गम्भीर दृष्टि से विचार किया गया है। द्वितीय अध्याय में मुनिज्ञानसागरजी का परिचय देकर उनकी कृतियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। इसी अध्याय में कवि के वैदुष्य, जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही इसमें जयोदय महाकाव्य के प्रत्येक सर्ग के कथानक का प्रस्तुतीकरण के साथ कथानक के वैशिष्ट्य पर दृष्टि निक्षेप किया गया है। कवि द्वारा उत्पादित काव्य सौन्दर्य का प्रतिपादन भी इसी अध्याय में किया गया है। तृतीय से अष्टम अध्याय तक कविकण्ठाभरण में वर्णित विविध प्रकार के चमत्कारों की दृष्टि से जयोदय महाकाव्य की समीक्षा की गयी है। तृतीय अध्याय में अविचारित रमणीय और विचार्यमाण रमणीय इन उभय चमत्कारों के अनेकानेक उदाहरण जयोदय महाकाव्य से लेकर उनकी विवेचना की गयी है। इस प्रबन्ध के चतुर्थ अध्याय में समस्त सूक्तव्यापी तथा सूक्तैकदेशदृश्य इन दोनों चमत्कारों की दृष्टि से जयोदय महाकाव्य की समीक्षा की गयी है। पंचम अध्याय में शब्दगत, अर्थगत, शब्दार्थगत चमत्कारों की दृष्टि से जयोदय महाकाव्य का मूल्यांकन किया गया है। षष्ठ अध्याय में अलंकारगत चमत्कार की दृष्टि से सविस्तार इस महाकाव्य की मीमांसा की गयी है।
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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