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________________ आलोक में समीक्षा करने के उद्देश्य से मैं इस शोध कार्य में प्रवृत्त हुयी हूँ। 'मुझ जैसी तुच्छ और अल्पज्ञ व्यक्ति द्वारा यह शोध कार्य किया गया है, जो सन्तों, विद्वानों, समाज के प्रबुद्ध वर्ग की प्रेरणा, कृपा, सहयोग व आशीष से ही सम्भव हो सका है। प्रस्तुत शोध कार्य की प्रेरणा संस्कृत विषय में प्रथम श्रेणी में एम.ए. करने के पश्चात् मेरी पूजनीया पितामही एवं परम आदरणीय माता - पिता ने मुझे शोध कार्य के लिए प्रेरित किया। उनसे प्रेरित होकर ही मैं इस कार्य में प्रवृत्त हो सकी, तथा डॉ. कृष्णकान्त शुक्लजी के निर्देशन में संक्षिप्त रूपरेखा स्वीकृति हेतु प्रस्तुत कर दी। स्वीकृति मिलने पर मैं शोध कार्य में लग गयी। संयोगवश मध्य में ही अचानक दुर्घटनावश से शुक्ल जी का देहान्त हो गया और मेरा शोध कार्य मझधार में ही रह गया तब उसको पूरा करने के लिए मैंने डॉ. श्रीमती प्रमोद बाला मिश्रा के निर्देशन में अपना शोध - कार्य पूर्ण किया। शोध प्रबन्ध का संक्षिप्त परिचय मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज (पूर्वावस्था में पं. भूरामल शास्त्री के नाम से प्रसिद्ध) ने 1937 ई. में जयोदय महाकाव्य की रचना की। यह महाकाव्य 28 सर्गों में निबद्ध है और इनमें 2974 श्लोक हैं। इनमें जिनसेन प्रथम द्वारा प्रणीत महापुराण में पल्लवित ऋषभदेव भरतकालीन जयकुमार एवं सुलोचना के पौराणिक कथनाक को पुष्पित किया गया है। इस महाकाव्य का दूसरा नाम सुलोचना स्वयंवर महाकाव्य भी है। इसके अन्य उपजीव्य साहित्य में उल्लेख्य हैं - महासेनकृत सुलोचना कथा (वि. सं. 800), गुणभद्रकृत महापुराण के अन्तिम पांच पर्व (वि. सं. 900), हस्तिमल्लकृत विक्रान्त कौरव अथवा सुलोचना नाटक (वि. स. 1250) वादिचन्द भट्टारकृत सुलोचना चरित (वि. सं. 1671), ब्र. कामराजप्रणीत जयकुमार चरित (वि. सं. 1710) तथा ब्र. प्रभुराज विरचित जयकुमार चरित। ___ जयोदय महाकाव्य की कथावस्तु ऐतिहासिक है। इसके नायक हस्तिनापुर नरेश, अप्रतिम योद्धा, सौन्दर्य तथा शील के भण्डार जयकुमार हैं और नायिका काशी नरेश अकम्पन की पुत्री राजकुमारी सुलोचना है। इन दोनों की हृदयहारी कथा भोग से योग, परिग्रह से त्याग तथा वीरता से शान्तिमयता की ओर ले जाने वाली है। जयोदय महाकाव्य में काव्य के सभी गुण विद्यमान हैं। साथ ही इसमें
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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