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तमः परिणाम चक्रबन्ध -
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चक्रबन्ध के अरों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को क्रम से पढ़ने से तपः परिणाम यह शब्द बनता है। इससे पता चलता है कि कवि ने इस वर्ग में जयकुमार द्वारा मोक्षप्राप्ति का वर्णन किया है।
आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपने जयोदय महाकाव्य में रमणीयता, उत्कृष्टता एवं विशिष्टता, मनोभावों की उग्रता मनुष्य के चारित्रिक वैशिष्टय, परिस्थितियों एवं घटनाओं का हृदयस्पर्शी अनुभव कराने के लिए अलंकारात्मक शैली का आश्रय लिया है।
कविवर ज्ञानसागर जी ने इन अलंकार को बलात् छन्दों में समाहित नहीं है अपितु ये अलंकार उनकी अद्भुत काव्य प्रतिभा, प्रकाण्ड पाण्डित्य, मौलिक चिन्तन, अनवरत अध्ययन-मनन, विषय प्रतिपादन की अनूठी शैली, अगाध वैदुष्य आदि उनके विविध गुणों के फलस्वरुप काव्य में अपने आप अवतरित हुए है। __अलंकारों की सुष्ठ संयोजना से काव्य सौन्दर्य क्रम नहीं है अपितु उसमें उत्कर्ष ही हुआ है। उसमें अतिशयता आयी है, रमणीयता में वृद्धि हुई है। अभिप्राय की अभिव्यक्ति चमत्कार पूर्ण ढंग से हुई है जो बड़ी प्रभावी है। इसी से यह महाकाव्य बीसवीं शताब्दी का अद्वितीय महाकाव्य बन गया है।
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