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सुलोचना स्वयंबर में जाने के इच्छुक अर्ककीर्ति अपने जाने की इच्छा प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि ऐसी बात है तो फिर मुझे भी चलना चाहिए अर्थात में भी चलूँगा। कारण यह अवसर तो बहुत सुन्दर है। चौराहे पर रखे हुए रत्न को लेने के लिए किसका मन नहीं चाहता ?
यहाँ पर कवि ने सामान्य से विशेष का समर्थन किया हैं। जयमहीपतुजोर्विलसत्त्रपः सपदि वाच्यविपश्चिदसौ नृपः।
कलितवानितरेतमेकतां मृदुगिरो हृयपरा न समाता॥
सुलोचना का जयकुमार को वरण करना अर्ककीर्ति को अच्छा नहीं लगा, जयकुमार व अर्ककीर्ति में युद्ध छिड़ गया। जयकुमार की विजय हुई। राजा अकम्पन ने कलंग के निवारण के लिए जयकुमार व अर्ककीर्ति का मिलाप करा दिया सत्य है मीठी बात के समान मेल कराने वाली कोई दूसरी वस्तु नहीं है।
कवि ने उस विशेष वाक्य के समर्थन के लिए सामान्य वाक्य मृदुगिरा हयपरा न समार्द्रता से समर्थन किया है।
अहमहो हृदयाश्रयवत्प्रजः स्वजनवैरकरः पुनरङगजः। भवति दीपकतोऽञ्जनवत् कृतिन नियमा खलु कार्यकपद्धतिः॥
राजा भरत अपने पुत्र अर्ककीर्ति के अविवेकपूर्ण कार्य को सुनकर आश्चर्य करते हुए कहते हैं कि मैं तो प्रजा को हृदय में स्थान देता हूं और मेरा यह पुत्र होकर भी अपने कुटुम्बियों से ही वैर करने वाला हो गया। यह ऐसी ही बात हुई जैसे दीपक से कज्जल। अतः कारण के अनुसार ही कार्य हुआ करता है, ऐसा एकान्तिक नियम नहीं है। कार्य के विरुद्ध भी कार्य हो सकता है।
___ इस श्लोक में विशेष का सामान्य से समर्थन किया गया है। एक अन्य निदर्शन देखिए -
हेमाडगदादिष्वधुना स्थितेषु बबन्ध पढें पटुरेण तस्याः। भाले विशाले दुरितान्तकाले भवन्ति भावा रमिणा रमासु॥
इस समय चतुर जयकुमार ने हेमाङगद आदि सालों के सामने सुलोचना के विशाल ललाट पर पट्टराज्ञी पद का पट्ट बांधा, सो ठीक ही किया, क्योंकि पाप कर्म का अन्त अर्थात् पुण्य कर्म का उदय होने पर स्त्रियों के 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वाध, 9/40 2. वही, 9/81
3. वही, उत्तर्रार्ध 21/82