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________________ व्यतिरेक अलंकार के चौबीस भेद हैं - व्यतिरेक अश्लेषनिबन्धनः श्लेषनिबन्धनः शाब्दे साम्ये आर्थे साम्ये अक्षिप्ते साम्ये हेतद्रयोक्तौ एकहेत्वनुक्तौ अपरहेत्वनुक्तौ हेतुद्वयानुक्त जयोदय महाकाव्य में व्यतिरेक गत चमत्कार - कथाप्यथामुष्य यदि श्रुतारात्तथा वृक्षा साऽऽर्य सुधासुधारा। . कामेकदेशक्षरिणी सुधा सा कथा चतुर्वर्गनिसर्गवासा॥ हे सज्जन! इस जयकुमार की कथा यदि एकबार भी सुन ली जाय तो फिर उसके सामने अमृत की अभिलाषा भी व्यर्थ हो जायेगी, क्योंकि अमृत तो चार पुरुषार्थों में कामस्वरुप एक पुरुषार्थ ही प्रदान करता है, किन्तु इस राजा की कथा तो चारों पुरुषार्थों को देने वाली है। ___इस श्लोक में उपमान अमृत से उपमेय जयकुमार कथा की उत्कृष्टता का वर्णन होने से व्यतिरेक अलंकार है। व्यतिरेक की अनुपम छटा अन्यत्र देखिए - भवाद्भवान् भेदमवाप चड़गं भव: गौरी निजमर्धमडगम् । चंकार चादो जगदेव तेन गौरीकृतं किन्तु यशोमयेन॥ कवि ने व्यतिरेक के माध्यम से चमत्कारी वर्णन करते हुए राजा जयकुमार को महादेव से बड़ा बतलाया है। यह राजा जयकुमार महादेव से भी बढ़ा - चढ़ा था, क्योंकि महादेव तो अपने आधे अंक को ही गौरी (पार्वती) बना सके किन्तु इस राजा ने तो अपने अखण्ड यश द्वारा सम्पूर्ण जगत् को गौरी कर दिया अर्थात् उज्जवल बना दिया। व्यतिरेक की एक और बानगी देखिए - तुल्यो न भानुर्भवतोऽखलस्य शशी कलडकादपि दूरगल्य। सिन्धुगंभीरोऽप्यजडाशयस्य तुडगोऽपि मेरुहृदि कोमलस्य॥ कवि ने व्यतिरेक के माध्यम से जयकुमार को सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र और मेरु पर्वत से भी श्रेष्ठ बतलाया है। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1/3 2. वही, 1/15 3. वही, उत्तर्रार्ध 19/19 20000000333333000003083688886004866654330000 230
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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