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इस श्लोक में कवि ने अकम्पन के माध्यम से बड़ा ही सटीक दृष्टान्त अर्ककीर्ति के समक्ष रखा हैं ।
महाराज अकम्पन अर्ककीर्ति से कहते हैं कि आपके साथ जयकुमार जो भी चपलता की है उसे भूल जायें उसके विषय में चिन्ता न करें। देखिस दूध पीते समय बछड़ा गाय की छाती में चाट मारता है फिर भी गाय अप्रसन्न न होकर उसे दूध ही पिलाती है ।
एक अन्य दृष्टान्त अवलोकनीय है
क्षमो न भोक्तुं ममतां तु भोगी रहस्यमडगीकुरुतेऽत्र योगी । यथोदितं लङघनमेति रोगी नियोगिने तस्य समस्ति नो गीः ॥
कवि ने इस श्लोक में दृष्टान्त के माध्यम से भोगी और योगी के अन्तर को स्पष्ट किया है । भोगी मनुष्य ममता को छोड़ने के लिए समर्थ नहीं होता, जबकि योगी त्याग के रहस्य को अंगीकार करता है । जैसे रोगी व्यक्ति के कहे अनुसार लंघन को प्राप्त होता है, परन्तु विवाह कार्य में दीक्षित मनुष्य के लिए लंघन की बात भी उसे रुचिकर नहीं होती । एक और पद्य द्रष्टव्य है कवयो जिनसेनाद्याः कवयो वयमप्यहो । कौस्तुभोऽपि मणिर्यद्वन्मणिः काचोऽपि नामतः ॥
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कवि इस पद्य में दृष्टान्त अलंकार के द्वारा विनयपूर्वक अपनी लघुता दर्शाते हुए कहते हैं कि कवि तो वास्तव में जिनसे आदि ही हैं। आश्चर्य है कि हम भी कवि बन गये हैं । यह तो उसी प्रकार हुआ, जिस प्रकार कौस्तुभ मणि ही वास्तविक मणि है परन्तु काँच को भी मणि कहा जाता है। अर्थात् जिनसेन आदि ही वास्तविक कवि है हम तो नाम के कवि हैं ।
व्यतिरेक अलडकार :
आधिक्यमुपमेयस्योपमानान्यूनताऽथवा ।
व्यतिरेकः : एक उक्ते नुक्ते हेतौ पुनस्त्रिधा ॥
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार जहाँ पर उपमान से उपमेय को अधिक अथवा न्यून बताया जाये वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है ।
उदभट के अनुसार व्यतिरेक का स्वरूप
विशेषापादनं यत्स्यादुपमानोपमेययोः । निमित्तादृष्टिदृष्टिभ्यां व्यतिरेको द्विधा तु सः ॥
2. वही, 28/87
4. का. प्र. 2/6
1. जयोदयमहाकाव्य उत्तरार्ध, 27/6
2. सा. दा. 10/52
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