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________________ मृत्यु को प्राप्त होता रहता है पर चक्र से निकलकर मुक्ति पद को प्राप्त नहीं हो पाता। कवि ने यहाँ चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने वाले जीव के स्वरुप का यथार्थ चित्रण चौपड़े की गोट द्वारा समासोक्ति के माध्यम से प्रस्तुत किया है। दृष्टान्त अलंकार : दृष्टान्तः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम् ।' जहाँ (वाक्यद्वय) में साधारण धर्म आदि का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। जयोदयमहाकाव्य में दृष्टान्त गत चमत्कार : रूपवन्तमवलोक्य मानवं तत्पितृव्यमथवोदरोद्भवम् । योषितां तु जघनं भवेत्तथा हयामपात्रमिव तोयतो यथा॥ कवि ने अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए बड़ा ही सटीक चित्रण किया है। अपने दृष्टान्त से स्त्रियों के मन की चंचलता का बड़ा ही हृदयंगम वर्णन किया है। मनुष्य को रूपवान् होना चाहिए, फिर चाहे वह चाचा या पुत्र ही क्यों न हो उसे देखकर स्त्रियों का मन उसी प्रकार चंचल हो (द्रवित) हो उठता है जिस प्रकार पानी से कच्ची मिट्टी का वर्तन दृष्टान्त का चमत्कार अन्यत्र द्रष्टव्य भूरिशोऽपि मम संप्रसारिभिरौर्ववन्नृप समुद्रवारिभिः किं वदानि वचनैः स भारत-भूपभून खलु शान्ततां गतः॥ महाराज अकम्पन का दूत आकर अर्ककीर्ति के रोष को दृष्टान्त के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। इस श्लोक में कवि ने बताया है कि जिस प्रकार बड़वा नल समुद्र के विपुल जल से शांत नहीं होता, उसी प्रकार मेरे द्वारा कहे गये अनेक प्रकार के सान्त्वनापूर्ण वचनों से भी वह शान्त नहीं हुआ। यद्यपि चापलमाप ललाम ते जय इहास्तु स एव महामते। उरसि सन्निहतापि पयोऽर्पयत्यथ निजाय तुजे सुरभिःस्वयम्।। 1. का. प्र. 10/155 2. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध 2/152 3. वही, 7/72 4. वही, 9/12 masoma 2 0020400628862558 8888888882 r doodaee2 2xT...... १०.०००००००0000000000028888888888888888888333333000280023
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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