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स्तन भी सद्धारगडगधर - समीचीन हार रुपी गंगा को धारण करता है। जिस प्रकार शंकर उच्चस्तन शेलभूप - अत्यन्त ऊँचे कैलास पर्वत की भूमि की रक्षा करने वाले हैं उसी प्रकार तुम्हारा स्तन भी उचे स्तन शेलभूप है - अत्यन्त उन्नत पर्वत राज है। तुम इसे दिगम्बर बना दो दिगम्बर नाम युक्तकर दो (पक्ष में वस्त्र रहित कर दो) जिससे में चन्द्रचूड चन्द्रमौलि नाम से युक्त कर सकू (पक्ष में अर्ध चन्द्राकार नक्षतो से विभूषित कर सकू) संस्कृत काषों से शंकर के निम्नलिखित नाम प्रसिद्ध हैं - गङगाधर, उग्र, कैलासपति, दिगम्बर तथा चन्द्रचूड आदि।
यहाँ श्लेषाकार द्वारा इन नामों का प्रयोग किया गया है। गौरी नाम पार्वती का भी प्रसिद्ध है। समासोक्ति अलंकार -
समासोक्तिः समेर्यत्र कार्यलिडगविशेषणैः।
व्यवहारसमारोपः प्रस्तुतेऽन्यस्य वस्तुनः॥ जहाँ साधारण धर्म बनाकर प्रकृत में अप्रकृत वस्तुत के व्यवहार का आरोप होता है वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है।
जयोदय महाकाव्य में समासोक्तिगत चमत्कार - पथा कथा चारपदार्थभावा नुयोगभाजाऽर्युपलालिता वा। विद्याऽनवद्याऽऽ प न वालसत्वं संप्राप्य वर्षेषु चतुर्दशत्वम्॥
राजा जयकुमार की कीर्ति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि उस राजा की निर्दोष विद्या प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग और कारणानुयोग के अनुसारी मार्ग से उपलालित होती हुई भारतादि चौदह भुवनों में व्याप्त होकर आलस्यरहित हो गयी, निरालस हो व्याप्त हो गयी।
समासोक्ति के द्वारा इसका अर्थ यह भी होता है कि उस राजा की निर्दोष विद्या नामक स्त्री कथा आदि चार तरह के मार्गों द्वारा उपलक्षित होती हुई चौदह वर्ष की आयु प्राप्त करने से बवचन को लांघकर युवती बन गयी
है।
तीसरा अर्थ इस प्राकर से भी होता है कि उसकी एक ही विद्या कथादि चार उपायों से ललित होती हुई चौदह प्रकारों को प्राप्त हो गयी। अर्थात् वह राजा चौदह विद्याओं में निपुण हो गया। 1. सा. दा. 10/56 2. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1/6
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