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ज्ञाता विधाता ने इस सुलोचना के दोनों हाथों को भली भाँति बनाकर उसके बचे कूड़े करकर से कमलों को बनाया। इसीलिए उनका कीचड़ पैदा होने वाला पंकज नाम सार्थक सिद्ध होता है।
सुलोचना के सुन्दर हाथ के सम्बन्ध में कवि ने सम्भावना की है। आस्येन चास्याश्च सुधाकरस्य स्मिताशुभासा तुलया धृतस्य।
उनस्य नूनं भरणाय सन्ति लसन्त्यमूनि प्रतिमा नवन्ति॥
आचार्य ज्ञान सागर जी ने सुलोचना के अप्रतिम मुख सौन्दर्य का वर्णन किया है। .
किरणों से सुलोचना के मुख के साथ तुलना के लिए तुला पर रखा गया चन्द्रमा कम पड़ गया। अतः उसकी पूर्ति के लिए निमित्त दीख पड़ने वाले नक्षत्र नाम के छोटे मोटे बाट शोभित हो रहे हैं। सुलोचना के आगे चन्द्रमा की कान्ति भी कम है उसे अपनी कान्ति को बढाने के लिए नक्षत्रों का सहारा लेना पड रहा है।
कवि की यह कल्पना बड़ी ही अनूठी व अद्भुत है। उत्प्रेक्षा का मंजुल निदर्शन देखिए -
अप्राणकैः प्राणभूतां प्रतीकैरमानि चाजिः प्रतता सतीकैः। अभीष्टसभारवती विशालाऽसौ विश्वसृष्ट खलु शिल्पशाला।
जयकुमार व अर्ककीर्ति के महायुद्ध के युद्ध भूमि का वर्णन है। यह रणभूमि योद्धाओं के कटे निष्प्राण हाथ, पैर, सिर आदि अवयवों से भर गयी थी। कुछ लोगों को ऐसी प्रतीति होती थी कि मानों वांछित सामग्री पूर्ण विश्वकर्मा की शिल्पशाला ही हो।
छिन्न भिन्न अंगों से भरी हुई युद्ध भूमि की विशाल शिल्पशाला से सम्भावना की गयी है। खलु शब्द के प्रयोग होने से यह वाच्योत्प्रेक्षा है।
मासि मासि सकलान्विधुबिम्बानात्मभूस्तिरयते श्रितडिम्बान्।
सन्निधाप्य विबुधः स मनीषामाननानि रचितुं स्विदमीषाम॥
विद्वान विधाता ने प्रत्येक मास के अन्त में होने वाले कला सहित चन्द्रमा के बिम्बों को जो विप्लव था विनाश का आश्रय ग्रहण करते हैं, जो छिपाया वह मानों इन्हीं राजाओं के मुखों को बनाने की इच्छा से ही छिपाया हो। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 5/82 2. वही, 8/37 3. वही, 5/23
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