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________________ स्वयंबर के लिये आये हुए राजाओं को द्वारपाल ने मण्डप में उन राजा लोगों को आसन पर वैसे ही बिठाया, जैसे प्रभात रवि की किरणों को सरोवर स्थित कमलों पर बिठाया करता है। जिस प्रकार प्रभात सूर्य की किरणों को आदर से बैठाता है उसी प्रकार द्वारपाल ने सभी को अच्चे अच्चे आसनों पर बिठाया। कवि ने बड़ी ही सचित्र उपमा दी है। उपमा का एक और उदाहरण देखिए - संवहन्नपि गभीरमाशयमित्यनेन विषमेण सञ्जयः। केन वा प्रलयजेन सिन्धुवत् क्षोभमाप निलतोऽथ यो भुवः॥ इस श्लोक में उस समय का वर्णन है जब सुलोचना स्वयंबर में अर्ककीर्ति जयकुमार से युद्ध के लिए घोषणा करता है। तब गंभीर आशय धारण करने वाला वह जयकुमार भी इस घटना से क्षुब्ध हो उठा, और भूपालक व मर्यादाशील होता हुआ भी वह प्रलयकालीन सुप्रसिद्ध पवन से समुद्र की तरह चंचल हो उठा। इसमें कवि ने जयकुमार के धैर्य की उपमा समुद्र से बड़ ही प्रभावशाली ढंग से की है। जिस प्रकार समुद्र अत्यन्त गम्भीर, मर्यादाशील होता है, उसी प्रकार यह जयकुमार भी मर्यादाशील था। समुद्र में छोटे-छोटे तूफान आ जायें तो उसको कुछ फर्क नहीं पड़ता जब भयंकर तूफान आता है तभी समुद्र क्षुब्ध होता है। उसी प्रकार राजा जयकुमार असाधारण परिस्थितियों में ही क्षुब्ध होते थे। उपमा का एक अन्य उदाहरण द्रष्टव्य है, जिसमें रमणीय चमत्कार का निदर्शन है - मम समर्थनकृत् समभूत्तु स किमु वदानि वदाभ्युदयद्रुषः। निपतते हृदयाय विमर्षणः किल तरोः कुसुमाय मरुद्गणः।। अर्ककीर्ति अपने किये पर पछतावा करता हुआ अकम्पन से कहता है कि राजन! आप ही बताइये मैं क्या कहूँ ? जब मेरा मन रोष में आ गया और अपने स्थान से डिगने लगा तो जिस प्रकार वृक्ष पर से गिरते फूलों के लिए हवा का झोंका सहायक हो जाता है वैसे ही उस विकर्षन ने मुझे सहारा दिया। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 7/74 2. वही 9/26 .0000000000 ४४४6826655555555000000४००० 2 04) 360630888888888560226888888888888862 3%8383%88%%%%%%%%868808888888888888560000000000002 047
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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