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________________ मण्डप अत्यन्त रमणीय एवं मनोहारी प्रतीत हो रहा था। वह मण्डप सरोवर के समान रमणीय हो रहा था क्योंकि सरोवर में जल का समूह होता है तो मण्डप भी सुवर्ण से बना हुआ है। सरोवर में कमल खिलते हैं तो यह मण्डप भी पदमराग मणि से युक्त है। सरोवर में राजहंस होते हैं तो यह मण्डप भी श्रेष्ट राजाओं से सुशोभित है। इस पद्य में कवि ने उपमालंकार का सुन्दर विवेचन किया है। उपमागत चमत्कार का एक अन्य उदाहरण द्रष्टव्य है - मुकुरादिसमाधारं मौक्तिकादिस मन्वितम। ___ नवविद्रमभूयिष्ठाद्यानमिव मञ्जुलम॥ प्रस्तुत पद्य में कवि ने अपनी काव्य में निपुणता व्यक्त करते हे श्लिष्टोपमा का बड़ा ही मार्मिक प्रयोग किया है। __ वह मण्डप किसी बगीचे की तरह परम सुन्दर है। जैसे कोई बगीचा कलियों से भरा होता है वैसे ही इस मण्डप में चारों ओर दर्पणादि लगे हे है। बगीचे में पुष्पों के पौधे होते है तो इस मण्डप में मोती लटक रहे हैं। बगीचे में नयी कोंपले दिखायी देती है तो यह मण्डप भी मूगों की झालर आदि से सजा हुआ है। कवि उपमा प्रयोग में सिद्धहस्त है। उपमा का लालित्य वक्ष्यमाण श्लोक में दर्शनीय है - पयोधरसमाश्लिष्टा ध्वजाली विशदांशुका। तलुनीव लुनीते या विभ्रमैः श्रमभडिगनाम्॥ काशी के भवनों की शोभा का वर्णन करते हुए कवि ने तरुणी के साथ बड़ी ही मनोहारी उपमा की है। वहाँ के भवनों पर फहराती हुई सफेद वस्त्र की बनी और बादलों को छुती जो ध्वजाओं की पंक्ति है, वह तरूणी की तरह अपने साथ चलने वाले पक्षियों के भ्रमण के सहित प्राणियों का परिश्रम दूर कर देती है। तरुणी भी सफेद साड़ी पहने और सधन कुचों वाली होती हैं। वह अपने हाव - भाव के द्वारा लोगों के मन को लुभाती और श्रम शान्त करती रहती है। आसनेषु नृपतीनिह कश्चित् सन्निवेशयति स स्म विपश्चित। द्वास्थितो रविकारानवदात उत्पलेषु सरसी व विभातः। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वा, 3/75 2. वही, 3/82 2. वही, 5/22 20808040 2 030 40000000000000 &0000000002
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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